लेखक की कलम से

मानो या न मानो

 

 

मानो या न मानो……..!!!

कुछ सच………..???

 

इन्सानियत को ,

शर्मसार कर जाते है।

जब …..अखबारों में,

कत्लेआम,

मार-धाड़,

चोरी और लूटपाट के,

समाचार आते हैं।

 

चौराहे पर,

जिंदगी नीलाम हो जाती है।

लेकिन लोगों की आवाज़,

गाड़ियों की,

रफ्तार में खामोश हो जाती है।

 

मानो या न मानो……!!!

कुछ सच……………???

 

समाज को शर्मसार कर जाते हो।

जब ……………….अखबारों में,

गरीब की,

बेबसी की मार्मिक कहानी,

भ्रष्टाचार -मंहगाई की मारा- मारी,

औरतों के सम्मान पर,

हमले किये जाते है।

 

तीन वर्ष की,

अबोध बच्ची से लेकर,

सत्तर साल की वृद्धा के,

बलात्कार के समाचार आते हैं।

 

और हर अपराध पर

समाजिक सोच….!

हमें क्या …….?

लेना –  कह कर

खामोश  हो जाती है।

 

मानो या न मानो………!!!

कुछ सच….……………..???

 

रिश्तों को शर्मसार कर जाते है।

जब रिश्ते विश्वास पर,

विश्वासघात कर जाते है।

 

फर्ज निभाने वाले पर,

इल्ज़ाम लगायें जाते है।

 

घर को,

घर बनाने की बजाय,

मतलब का अखाड़ा बना लेते हैं।

 

ऐसे लोग समाज में,

मगरमच्छी आंसुओं के साथ

लोगों से सहानुभूति टटोलते है।

 

फर्ज निभाते नहीं,

और अधिकारों की,

बोली बोलते है।

 

जुल्म होता है,

दहेज के लिए…..

बेटी के पैदा होते ही….

प्रश्नचिन्ह लग जाते है।

 

लोग क्या ……..कहेंगे??

खोखली सोच से,

 

आत्महत्या के समाचार,

अखबारों में आते है।

 

लडकियां ही नहीं…….?

लड़कें भी,

वैवाहिक रिश्तों में,

सतायें जाते है।

 

बहू तो बेचारी है।

कुछ…. कर नहीं पाते है।

 

मानो या न मानो…….!!!

 

जिस समाज में,

लोग अन्याय के खिलाफ,

बोलेंगे  ही  …….. नहीं।

 

वो इन्सान, समाज और रिश्ते

भविष्य में रद्दी भाव बिक जायेंगे।

 

मानो या न मानो…….!!!!

सच है…….

 

अपनी इन्सानियत को ,

अगर

पहचान जाओंगे।

मनुज से देवता बन जाओंगे।।

©प्रीति शर्मा “असीम”, सोलन हिमाचल प्रदेश

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