लेखक की कलम से

जब तुम आए….

आज…
अचानक तुमको देखकर
ऐसा लगा जैसे….
पूनम का चांद
उतर आया हो
मेरे आँगन में
अमावस की लम्बी
अंधेरी रात के बाद….
चाँद से बूँद बूँद
टपकती चाँदनी में
नहाए तुम…
देवतुल्य…..
मेरी अमावस
रात को पूर्णिमा में
बदलते हो
तुम्हारे रोम रोम से
फूटता उज्ज्वल प्रकाश
बयाँ करना चाहता है
मेरे प्रति तुम्हारे असीमित
प्यार को
पर….मौन हो तुम
ठहरी हुई नदिया की तरह…
पढ़ पा रही हूँ मैं
उस अनकहे प्यार को
शब्द नही है मेरे पास
जो काढ़ सकूँ कसीदे
तुम्हारे अमोल एहसासों के लिए…
इसलिए मैं भी ….
मौन हूँ ताकि ….
पढ़ सको तुम भी मेरे मौन को
महसूस कर सको मेरे…
अनकहे जज्बातों को ….

©नीलम यादव, शिक्षिका, लखनऊ उत्तर प्रदेश

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