लेखक की कलम से

क्या है गोल्डन रूल ?….

क्या आप जानते हैं कि गोल्डन रूल ( सुनहरा नियम ) इतना पुराना है कि इसे जीसस के समय में भी नया नहीं माना जाता था । वहां से हमें जो गोल्डन रूल मिले, उनमें से ज्यादातर को आप जानते हैं, लेकिन यहां इनके ऐसे रूप दिए जा रहे हैं, उनका इतिहास और भी पुराना है :
-दुआ करो कि दुसरों को भी वही मिले, जो आप अपने लिए चाहते हैं ( मिस्र में एक कब्र के शिलालेख पर अंकित लगभग 1600 ईसा पूर्व )।
-जैसा बर्ताव आप अपने लिए नहीं चाहते, वैसा बर्ताव दुसरों के साथ भी न करें ( कन्फ्यूशियस )।
-हमें दुनियां के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए, जैसा हम दुनियां से अपने लिए चाहते हैं ( अरस्तू )।
आप समझ सकते हैं कि सामाजिक व्यवहार में सहजता के लिए गोल्डन रूल का अस्तित्व पिछले कई हजार वषों से चला आ रहा है । बदकिस्मती यह है कि दुनियां ने इन गोल्डन रूल के शब्दों को तो याद कर लिया है, लेकिन भावनाओं को बिसार दिया । अगर इस बात को अपने और दुसरों को फायदा पहुंचाने वाले व्यवहार के लिए इस्तेमाल करना चाहें, तो इसे ऐसे कह सकते हैं –
सुनहरा नियम का मतलब है कि हमें दुसरों के साथ वही व्यवहार करना चाहिए, जैसे हम दुसरों से अपने लिए चाहते हैं, अगर हम दुसरों के जगह हों , तो । इसके बारे में सोचिए यह एकदम सही गोल्डन रूल नहीं है, यह एकदम आगे है । इस नियम के मुताबिक आपको भी सामने वाले की जरूरत को उसकी नजर से देखकर समझना होगा ।
गोल्डन रूल की उपयोगिता –
” तो क्या इसका मतलब है कि गोल्डन रूल नियुक्ति देने और बर्खास्त करने में भी लागू होता है ? मैं तो ऐसा नहीं कहूँगी कि यह हमेशा लागू होता ही है, लेकिन फिर भी लंबे औसत में यह लागू होता है । हर्जाने का नियम, जिसके साथ बहुत थोड़े या पुरे कब्जे के बीच तय करने की सलाह आती है, भी हर्जाने के साथ लागू होता है ।
यह मत सोचिए कि आप जब चाहें तब गोल्डन रूल को नकार सकते हैं । इससे आपको कुछ भी नही मिलेगा , यदि आप सिर्फ सामने वाले की इच्छाओं की पूर्ति कर दें, जबकि दिल से आप बेहद स्वार्थि और संकीर्ण हों । क्योंकि “मानवीय चरित्र लगातार अपने आपको उजागर करता जाता है । यह छिप नहीं सकेगा …. यह उजाले में आ ही जाएगा..। जैसे कि न्यायाधीश पर ऐसे वकील की दलीलों के असर को कोई महत्व नहीं देता, जो दिल में पहले ही मान चुका है कि उसका मुवक्किल वाकई दोषी है । यदि वह इस बात पर पुरा विश्वास नहीं भी करता, तो उसका अविश्वास ही न्यायाधीश को झलक जाएगा और वह अविश्वास उनके अंदर जगह बना लेगा, जिस बात पर हमारा विश्वास ही नहीं है । उसे हम चाहे जितनी बार दोहरा लें, लेकिन उस बात को दुसरे को पुरी सफाई से नहीं समझा पाएंगे । जो मिला उसमें संतुष्टी, जो नहीं मिला उसमें मौन ऐसा करने से मन ही मन कितनी आत्महत्या होती है क्योंकि वह खुद ही अपने चेहरे अपने रंग रूप और अपने हाथ की लकीरों में खुद ही से लिख लेता है । इसलिए खुद के ऊपर विश्वास करना बेहद जरूरी है । उसके बाद आप लोगों के ऊपर विश्वास करें आप दुसरों के ऊपर विश्वास करेंगे, वो आपके ऊपर विश्वास करने लगेंगे । उनके साथ महान लोगों की तरह बर्ताव किजीये । वे भी अपने अंदर बड़प्पन पैदा कर लेगें ।
बहरहाल, अब आपने सफलता के चरम रहस्य को जान लिया है, आपको इससे मानसिक शांति की प्राप्ति के लिए एक बेहद स्वयर्सिध्द मार्गदर्शन के रूप में स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं होगी ।
मानसिक शांति का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह बौद्धिक शक्ति को बढ़ावा देता है । गर्म दिमाग के मुकाबले शांत दिमाग ज्यादा प्रखर होता है । उत्तेजित दिमाग ताकिर्क और व्यवस्थित विचारों को जन्म नहीं देसकता । आशांत दिमाग में भावनाएं निर्णय को प्रभावित करने लगती हैं । यह महंगा पड़ सकता है । जबकि शक्ति शांति से पैदा होती है । ” शांत दिमाग से मेरा मतलब एक बेहद व्यवस्थित दिमाग से है । “खामोशी वो चीज़ है जिसमें अनेक चीजें एक साथ अपना रूप ग्रहण करती हैं ।”
©तबस्सुम परवीन, अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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