लेखक की कलम से

एक साँवली लड़की…

 

हाँ रंग है सांवला मेरा

रहा जो परेशानियों का सबब

हमेशा,

क्योंकि सुंदरता तो है

केवल और केवल गोरे रंग में,

कभी स्कूल तो कभी कॉलेज में

हर जगह ही मिली उपेक्षा

सिर्फ इसलिए क्योंकि

रंग था मेरा साँवला

एक बार

सहपाठी ने ही कर दिया इनकार

संग में डांस करने से

क्योंकि गाने में था

गोरे रंग का ही गुणगान,

ज़िंदगी बीत गयी

इसे गोरा करने में

पर ढाक के फिर वही तीन पात

किसी ने कहा हल्दी

तो किसी ने मुल्तानी

रंग भी जिद्दी था मेरा

कहाँ था सुधरने वाला

कई लोगों ने माँ से जताया दु:ख

कैसे होगी इसकी शादी ?

माँ ने बोला कोई तो

होगा मेरी बेटी के लिए भी

जो देखेगा सिर्फ सुंदर मन

नहीं देखेगा उसका काला रंग

और हर लेगा उसके सारे गम,

कुछ ऐसे निकल पड़ी

ज़िन्दगी की गाड़ी

और हो गई मेरी भी

सुंदर सुयोग्य वर से शादी।

©प्राची अनु कौशल, गाज़ियाबाद

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