लेखक की कलम से

एक तस्वीर …

वैशाली सोनवलकर, मुंबई  | अमूमन हम सभी अपनी जिंदगी को अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं हर क्षण अपने हिसाब से जीना चाहते हैं यहाँ तक की तस्वीर में भी अपनी सबसे अच्छी इमेज कैद करना चाहते हैं परंतु जीवन के आश्चर्य अप्रत्याशित घटनाओं में छुपे होते हैं।आज आई की पुण्यतिथि पर एक तस्वीर के जरिए उन्हें याद कर रही हूँ,

 

अपनी दृढ इच्छा शक्ति से विपरीत परिस्थितियों में भी डटे रहने का माद्दा रखने वाली मेरी सासू मां, उनको गये अब दो साल हो गये लेकिन लगता है कि अभी फिर आवाज लगायेंगी उठो ,

आ०बाबा के निधन के कुछ दिनों बाद जब बेटे ने पूछा कि घर के डिब्बों से अब अनाज खत्म हो गया है

अब हम क्या करें ..

तो वो समझ गयी कि अब विलाप करने का समय चला गया ..अगले ही दिन  किराने वाले को सामान की लिस्ट देते हुये नौकरी पर चली गयीं, तमाम विरोध के बावजूद वह अपने बच्चों के भविष्य के लिए अडिग रही ,

जीवन के अंतिम महिनों में वो बिस्तर पर रहीं ,उन्हें इतना शांत और सिमटा हुआ देखकर आंखे भर आती थी।

बहरहाल ,दवाईयां नली से दी जाती थी जिन्हें देने अस्पताल से एक लड़का आया करता था ,हमारे घर से जाने के बाद वो गली में अपने फोटोग्राफर दोस्त के यहांँ कभी कभार मिलने चला जाता था , वहीं उसकी दराज में उसे मिली ये ना़याब तस्वीर जो कभी हार न मानने वाली आदरणीय आई का जीवंत दस्तावेज है।

कैमरे का लेंस चेक करते हुए अचानक खींची गयी ये फोटो और उसे सुंदर फ्रेम में जड़कर उस दवाई देने वाले लड़के का आलोक दादा को देना किसी आश्चर्यजनक घटनाक्रम से कम नहीं , जैसे कि उसे इस फोटो की अहमियत का अंदाजा़ लग गया हो।

समाज में फैली ये छोटी छोटी इमोशनल कडियाँ यकीनन साबित करती रहेंगी की सोशल मिडिया पर बनें सुबह शाम के रिश्तों और सेल्फी की चमक से भी इतर कोई तस्वीर बहुत कुछ कह सकती है।

 

 

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