लेखक की कलम से

विकट समय ने घेरा है …

 

विकट समय है काल खड़ा है एक एक कर लील रहा

भारत सहित पूरे विश्व को काल बनकर लील रहा।।

 

 मानव से मानव भाग रहा बचा नहीं कोई आधार

 रोजी रोटी छीन रहा मानवता हो रहा शर्मसार।।

 

राज तंत्र ने मुह फेरा है जानकर सबकुछ अनजान

जठराग्नि की ज्वाला से देखो कैसे परेशान हो रहा इंसान।।

 

 आंख बंद करके रखा है कान में भी डाला है तेल

अब मन की बात न करो भाई जी अब पेट में बस चाहिए तेल।।

 

जॉब गए नौकरी पेशा के काम का निकला कबाड़ा

एक एक कर ड्रीम प्रोजेक्ट का होता जा रहा कबाड़ा।।

 

 निम्न वर्ग तो परेशान है लेकिन माध्यम वर्ग भी हो रहा परेशान

अब कैसे मौन साध सकते हो भाई जब आम जन हो रहा परेशान।।

 

हवा उड़ने की बात ही छोड़ो जमीन पैरों तले खिसक रहा

अब तो रोटी रोटी का देखो लाले कैसे पड़ रहा ।।

 

 धंधा चौपट हुआ लाला का एम एन सी का भी निकल दम

 लाखों लाख कमाने वाले अब तो हो रहे हैं बस वेदम ।।

 

अब भी न जागे सरकार तो फिर भारत भर में फैलेगा मातम

फिर आप जैसे कुशल शासक के विजन पर होगा मातम।।

 

 सर्व विकास की बात करें तो मध्यम वर्ग भी होंगे शामिल

 इन वर्गों को जिंदा रखो आगे भारत विकास में होंगे शामिल ।।

 

जब पेट में न होगा दाना तो फिर राग सरकार वेकार है

धीरे धीरे विश्वास जनता का टूटता जा रहा सरकार है।।

 

 कुछ काम किये वेशक तुमने जो वर्षों से लंबित रहा

पर अब उस जनता को देखो जो भूख से अब विलख रहा।।

 

अंत निवेदन सरकार सहित लाला जी मत तोड़ो अपनों का विश्वास

खून पसीने से सींचा है हमने आपके वगिया को ख़ास।।

 

 टूट गया विश्वास जो मन से मन कुंठा से भर जाएगा

अपने खून पसीने से फिर हम जैसों का विश्वास ही उठ जाएगा।।। 3

 

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद

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