लेखक की कलम से

दर्द बहुत है, दिल में …

दर्द बहुत है, दिल में मेरे,

छाई बादल बन, पीर घनेरे।

अब और कितना कष्ट सहूं मैं,

तेरे सिवा माँ, किससे कहूं मैं।

हे! माँ, अब तो धरा की पीर हरो न,

इस नववर्ष में कुछ चमत्कार करो न।।

जीवन में अंधकार बहुत है,

कष्टों का प्रकार बहुत है।

हाहाकार यहाँ मची हुई है,

चिता पे चिता रची हुई है।।

हे!माँ अब बन्द,नरसंहार करो न।

इस नववर्ष में कुछ चमत्कार करो न।।

क्रंदन मची है मकानों में,

भीड़ लगी है श्मशानों में।

मंदिर की घंटी मौन हो गया,

आज फिर कोई, लाल सो गया।

हे!माँ किसी का यूँ, न सिंगार हरो न।

इस नववर्ष में कुछ चमत्कार करो न।।

बड़े- बड़े यहाँ हस्ती खो गये,

क्यूँ वक्त से पहले बस्ती सो गए।

दर्द बहुत है आज जमानें में,

लाखों भी कम है, दिखाने में।।

हे !माँ,अब अपने बच्चों का कष्ट हरो न।

इस नववर्ष में कुछ चमत्कार करो न।।

तेरी मंदिर में आकर, हे!माते,

बोलो कौन जोत जलाएगा?

कौन तुम्हें फिर माता कहेगा,

बोलो कौन फूल चढ़ाएगा?

भक्तों की भक्ति का हे!माते अब भाव धरो न।

इस नववर्ष में अब, कुछ चमत्कार करो न।।

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)

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