लेखक की कलम से

सावन …

गज़ल

 

 

सावन में मेघों को जो मस्ती आयी है,

तो नाच उठी उनके सँग में पुरवायी है |

 

फूलों पे बूंदों की रिमझिम ऐसी बरसी,

बूँदों से भवरों पे मदहोशी छायी है।

 

यौवन से धरती भी निखरी जैसे दुलहन ,

कण कण में हरियाली हँसकर हरसायी है।

 

बेहद खुश एक कली जो खिलकर फूल बनी,

पूरी बगिया जिसके कारण मुसकाई है |

 

झर झर झरते झरने दिलकश लगते झरना,

दौलत ये झरनों की कुदरत ने पायी है।

 

©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड                             

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