लेखक की कलम से

प्रिये तुम्हारी आँखों ने कल, दिल का हर पन्ना खोला था….

 

दिल से दिल के संदेशे सब

होठों से तुमने लौटाये

प्रेम सिंधु में उठी लहर जो

कब तक रोके से रुक पाये

लेकिन मुझसे छिपा न पाये

रंग प्यार ने जो घोला था

 

उल्टी पुस्तक के पीछे से

खेली लुका-छिपी आँखों ने

पल में कई उड़ानें भर लीं

चंचल सी मन की पाँखों ने

मैंने भी तुमको मन ही मन

अपनी आँखों से तोला था

 

नज़रों के टकराने भर से

चेहरे का जयपुर बन जाना

बहुत क्यूट था सच कहती हूँ

जानबूझ मुझसे टकराना

कितना कुछ कहना था तुमको

लेकिन बस सॉरी बोला था….

©गरिमा सक्सेना, बंगलुरू

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