लेखक की कलम से

किस्सों की दुकान …

एक दिन एक पल में

धुआँ हो जाएगा सब कुछ

पुराना सूरज

पुरानी पृथ्वी

पुराना आकाश

सब …. मर जाएँगे एक दिन

 

बची रह जाएँगी

किसी पेड़ पर खुरच कर

लिखी गईं तहरीरें

पाई जाएँगी

कोयला खदानों में

 

कोई पुरातत्ववेत्ता बाँचेगा

किसी ध्वस्त इमारत की

ज़ख्मी दीवार पर जड़ी

शाहकार इबारतें

 

हर युग में

भुलक्कड़ स्याहीकार

सुनहरी स्याही बनाना भूल जाते हैं

इसीलिए

अधूरे प्रेम की सिद्ध कथाएँ

रक्तिम आभाओं के साथ

फिर किसी न किसी

किस्सों की दुकानों पर पाई जाएँगी……!!!

 

 

©पूनम ज़ाकिर, आगरा, उत्तरप्रदेश

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