लेखक की कलम से
बारिश की बूंदें …
भीग रहा अंबर आनन
भीग रहा मन का आंगन
भीगा शब्द शब्द मेरा
इसने छन छन कर घेरा
बादल ऊपर गरज रहा
पपिहा मिलने को तरस रहा
बह जाए इन बूंदों संग
सारे ग़म के कानन
सहस बिहस पंछी चंचल हो
सुप्त मन बहुत विचल हो
उमड़ घुमड़ बादल छाया
बरखा झमझम बरस रही
बूंद-बूंद छम छम नाच रही
क्या बोलूं और क्या-क्या गाऊं
बादल बरसा बूंदों का धुन सुनाऊं!
©लता प्रासर, पटना, बिहार