लेखक की कलम से

रेशम की डोरी में बंधा भाई-बहन का प्यार …

रक्षाबंधन सावन के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।यह सामाजिक व पारिवारिक भाई-बहन का पर्व है।  सावन के महीने में शिव-पार्वती जी की पूजा होती है, लड़कियाँ अपनी ससुराल से पीहर आती हैं आम की डाली पर झूले पड़ते हैं, सखियों से मिल कर सावन के गीत गाये जाते हैं।

सावन महीने के आख़िर में रक्षा-बन्धन का पर्व आता है।

इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर लम्बी उम्र की कामना करती है। भाई भी अपनी बहन को उपहार, पैसे देकर सम्मान करता है। यह आत्मिक प्रेम का बन्धन है।

भावनात्मक रिश्तों में बंधा यह रिश्ता धर्म से परे सीमाओं पर हमारे जवानों की रक्षा के लिए भी बहनें राखी बांधकर उनकी सुरक्षा की कामना करते हैं। ये राखी रेशम की डोरी, सूती धागे, सोने-चाँदी से भी बनी आकर्षक आकृति व सुन्दर रूप लिए बाज़ारों में सजी ख़ूब लुभाती हैं। इस पर्व में घेवर की मिठाई का प्रचलन है, घेवर से मुँह मीठा करना शुभ माना जाता है।

रक्षा-बन्धन पर्व को मनाने के पीछे कई कथाएँ सुनने को मिलती हैं….!

पुराणिक कथाओं की माने तो, माना जाता है कि देव और दानव में जब युद्ध छिड़ा दानव से परेशान होकर इन्द्र जी अपनी कठिनाई लेकर बृहस्पति जी के  पास पहुँचे उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। इन्द्र की पत्नी इंद्राणी को जब ये बात मालूम हुई तो उसने एक रेशमी धागा सुरक्षा मंत्र पढ़कर इन्द्र की कलाई पर बांध दिया। माना जाता है इसी मंत्र से देवताओं ने दानव पर विजय प्राप्त की। उस दिन पूर्णिमा भी थी, तब से पूर्णिमा के दिन राखी का पर्व मनाया जाने लगा।

कथाएँ ऐसी भी मानी जाती है कि  राजपूत जब युद्ध के लिए जाते थे, तब महिलाएँ उनके माथे पर तिलक लगाकर रेशमी धागा कलाई में बांधकर भेजती थी। इस प्रकार विश्वास है कि धागा उनको युद्ध में  विजयश्री प्राप्त कर वापस लाता था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत में पांडवों की पत्नी द्रोपदी ने भगवान श्री कृष्ण की कलाई से बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा था। जिससे उन दोनों के बीच भाई-बहन का रिश्ता बन गया था। तथा श्री कृष्ण ने चीर हरण के समय द्रोपदी की रक्षा कर उसकी लाज बचाई थी।

राखी के पर्व को लेकर अनेक प्राचीन कथाएँ हैं, जो सोचने पर विवश कर देती हैं कि इतनी पवित्र सुन्दर परम्परा को स्थापित करने वाले कितने महान व्यक्तित्व रहे होंगे, ये आदर्शों की बेला सदियों से  चली आ रही है। भाई-बहन को जोड़ने वाली ये रीति- रिवाजों में पली बहुमूल्य परम्परा को सभी बहने अपने आशीर्वाद से अपने भाईयों की रक्षा करती आ रही हैं ।

भले ही आज हमारी प्राथमिकता बदलती दिखाई दे रही हैं, पर इस पर्व व इस रिश्ते की परम्पराओं को आज भी बड़ी शिद्दत से निभाया जाता है। हमारे युवा को एक प्रेरणा हमारे बच्चों को एक संस्कार के रूप में ये बन्धन बांधे रखता है।

 

©अनिता चंद, नई दिल्ली                 

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