लेखक की कलम से

श्रृंगार …

 

स्वप्न की मटमैली चादर के एक छोर पर तुम थे,

एक छोर पर मैं

हमारे बीच पूरा ब्रम्हांड लटक रहा था

तुमने देखा होगा शायद

प्रिय मिलन से कैसे प्रसन्नता से चमक रहे होंगे

कुछ चमकदार चेहरे

तुमने देखा होगा शायद उन चेहरों को भी

किसी धूसर भूमि की तरह

जो भावविहीन सपाट होंगे

तुम चुन सकते हो अपने चेहरे का श्रृंगार

मैं अब भी दूसरे छोर पर अटकी हुई हूँ

तुम्हारे चयन पर निर्भर हैं

मेरे चेहरे का भी श्रृंगार।

©वर्षा श्रीवास्तव, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश

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