पेण्ड्रा-मरवाही

माधव राव सप्रे की कर्मभूमि पेंड्रा …

पेंड्रा (अमित रजक)। हिंदी पत्रकारिता जगत के प्रथम और विशिष्ट स्थान रखने वाले स्वर्गीय माधव राव सप्रे की पुण्यतिथि 26 अप्रैल है। माधव राव सप्रे जन्म भले ही दमोह में हुआ था। मगर सप्रे की कर्मभूमि पेंड्रा थी। जहां से सप्रे ने हिंदी पत्रकारिता की बुनियाद रखी। 120 साल पहले सन 1900 में जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था तब केवल छत्तीसगढ़ राज्य के पेंड्रा में छत्तीसगढ़ मित्र नामक पत्रिका का प्रकाशन अभावों के बीच शुरूआत किया गया था।

माधव राव सप्रे 19 जून 1871 – 26 अप्रैल 1926 का जन्म दमोह के पथरिया ग्राम में हुआ था बिलासपुर में मीडिल तक की पढ़ाई के बाद मेट्रिक रायपुर से पास किये। 1899 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रुप में शासकीय नौकरी मिली जरूर पर उन्होंने भी भारत भक्ति प्रदर्शित करते हुए अंग्रेजों की गुलामी और शासकीय नौकरी की परवाह नहीं की। सप्रे 1899 में छत्तीसगढ़ के पेंड्रा के राजकुमार के अंग्रेजी शिक्षक बने।

उन्होंने यहीं से सन 1900 में ‘छत्तीसगढ़ मित्र’का संपादन की शरुआत की। उनकी यह पत्रिका देशभर में प्रसिद्ध हो गयी। इसका प्रकाशन सन् 1902 तक चलता रहा। उस दौर में ख्याति तो बहुत मिली लेकिन तब विज्ञापन देने का रिवाज नहीं था। लागत वितरण के भी खर्चे बढ़ने लगे। पहले वर्ष में छत्तीसगढ़ मित्र को 175 रुपए और दूसरे वर्ष 118 रुपए का घाटा उठाना पड़ा। इस क्षति के एवज में भरसक सहयोग की मांग की जाती रही लेकिन घाटा बरकरार रहा।

तब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। गुलामी की यह जंजीरें सिर्फ शासन तंत्र के पांवों पर ही नहीं थी बल्कि अज्ञानता कुरीतियों और अंधविश्वास की बेड़ियों ने भी समाज को सदियों से जकड़ रखा था। इसी दौर में सप्रे ने छत्तीसगढ़ के पेंड्रा को चुना। तब सप्रे पेंड्रा जमीदारी में तत्कालीन राजकुमार को अंग्रेजी की शिक्षा दिया करते थे।

पेंड्रा के ही सबसे पुराने अग्रेजों के जमाने के आज पर्यंत तक चला आ रहा है। जनपद विद्यालय जिसकी नींव अंग्रेजी हुकूमत के दौर 1884 में रखी गई थी इसके प्रांगण में पहले माधव राव सप्रे वाचनालय भी था मगर देखरेख के अभाव में उस वाचनालय में ताला लग गया।

अब जब पेंड्रा जिला बन चुका है (गौरेला-पेंड्रा-मरवाही) तब यह मांग जायज उठती है कि पेंड्रा में माधव राव सप्रे वाचनालय की शुरुआत की जानी चाहिए। ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान का वरदान साबित होगी। साथ ही क्षेत्र की अमूल धरोहरो को भी संवारने की बेहद जरूरत है। इस नए जिले का बेहद ही गौरवशाली इतिहास रहा है। जिसे संरक्षण और संवर्धन से यह जिला राज्य में एक अलग ही पहचान स्थापित करेगा।

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