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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय और संत कुमार नेताम की याचिका को सिरे से किया खारिज, जोगी परिवार ने किया फैसले का स्वागत

बिलासपुर। आज 15 जुलाई 20 को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष नन्द कुमार साय और संत कुमार नेताम की उस याचिका को सिरे से खारिज कर दिया। जिसमें उन्होंने 18 सितंबर 2013 को सरकार द्वारा स्व. अजीत प्रमोद कुमार जोगी के विरद्ध छानबिन समीति की रिपोर्ट को वापस लेने को निर्णय को ”धोखा“ (FRAUD) करार दिया था। 38 पन्नों के अपने आदेश में जस्टिस राजेन्द्र चन्द्र सिंग सामंत ने कंडिका 16 में राज्य शासन के लिखित उत्तर का उल्लेख किया है जिसमें शासन ने 22 अप्रैल 2013 और 22 जून 2013 की छानबिन समीति की रिपोर्ट को वापस लेने का आग्रह इस आधार पर किया था कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा माधुरी पाटिल केस के निर्देश क्रमांक (5), जिसमें स्व. अजीत प्रमोद कुमार जोगी को अपना पक्ष रखने का अवसर देना अनिवार्य था, का पालन शासन के द्वारा नही किया गया था।

उपरोक्त याचिका कर्ताओं के समर्थन में छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा 11 अक्टूबर 2019 को लिखे पत्र को प्रस्तुत किया गया, जिसका उल्लेख उच्च न्यायालय के आदेश की कंडिका (14) में मिलता है। उच्च न्यायालय ने इस पत्र को निराधार मानते हुए अपने आदेश की कंडिका (27) में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि ”सरकारी निर्णय को सरकार के परिवर्तन और सत्ता संभालने वाले किसी अन्य राजनैतिक पार्टी द्वारा आसानी से समाप्त नही किया जाना चाहिये। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस बात पर बल दिया है कि उत्तराधिकारी सरकारों को भी पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा लिए गये निणर्यो का सम्मान करना चाहिये।“

उच्च न्यायालय के इस आदेश ने एक बार फिर प्रमाणित कर दिया कि पूर्ववर्ती रमन सरकार के द्वारा जो तथाकथित छानबिन समीति की रिर्पोट वापस लेने की दरखास्त की गयी थी, उसका प्रमुख कारण स्व. अजीत प्रमोद कुमार जोगी को माधुरी पाटिल प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय के तथा 2013 छत्तीसगढ़ जाति निर्धारण नियमों के विपरीत बिना उन्हें सुनवाई का अवसर दिये उनकी पीठ के पीछे मनगढ़ंत रिर्पोट तैयार करना था।

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