लेखक की कलम से
मुक्त विधा …
पर्यावरण विशेष
लगता है अब पर्यावरण केवल,
कविता, कहानी और भाषण का मुद्दा बन गया है ।
अपने आपको ,
प्रभावी सिद्ध करने का कोई माध्यम बन गया है।।
नेता भी जब वोट माँगने आता है,
प्रदूषण कम करने का खूब, डंका बजाता है।
लोगों को अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में फँसाने का, मानों कोई साधन बन गया है ।
लगता है अब……..
क्षणिक स्वार्थ हेतु, जंगल उजड़ रहे हैं,
देवसरिताएँ तक मैली हो रही हैं ।
वृक्षों को काटना, नदियों को पाटना ,मानों स्वभाव बन गया है।
लगता है अब…….
आखिर कब समझेगा मानव, अपना समुचित हित,
कब तक होता रहेगा, हितैषियों को कुचल प्रसन्नचित ।
अपने ही कवच को कुरेदना, कैसे आज लाभदायक बन गया है ।
लगता है अब पर्यावरण केवल,
कविता कहानी और भाषण का मुद्दा बन गया है ।
©रानी साहूरानी, मड़ई (खम्हरिया)