लेखक की कलम से

सरहदें …

 

सरहदों को

ज़मीं तक ही

रहने दो

मत उगने दो

दिलों में सरहदें

 

पवन, पंछी, पानी-सी

प्यार की बयार

बहने दो

दर्द देती हैं सरहदें

सरहदों को जमीं तक ही

रहने दो

 

स्नेह की

कोई खिड़की

खुली रहने दो

मजबूत दीवारें हैं सरहदें

सरहदों को

जमीं तक ही

रहने दो

 

दिल-दरवाजे पर

हठ की दीमक

न रहने दो

दिलों पर जख्म हैं सरहदें

सरहदों को

जमीं तक ही

रहने दो …

 

 

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़

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