लेखक की कलम से
परछाई / प्रतिछाया …
मै क्षमा छाया पकड़ने दौड़ी।
सूरज पीछे था।
छाया आगे-आगे भागती जा रही थी।
पकड़ में नहीं आ रही थी।
एक ज्ञानी मिले।
प्रयोजन समझा और कहा-
“अपना रास्ता उलट दो,
सूर्य की ओर मुँह करके चलो।
छाया पीछे-पीछे दौड़ने लगेगी।”
वस्तुतः माया छाया है।
ईश्वर सूर्य।
माया के पीछे भागने से वह हाथ नहीं आती,
पर जब भगवान की ओर
मुँह करके चलते हैं तो
वह पीछे-पीछे दौड़ने लगती है।
जिसकी इस सिद्धांत पर आस्था नहीं,
वह मृगतृष्णा में दौड़-दौड़कर टूट ही जाता है।
©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज