लेखक की कलम से

भूतकाल को बिना पछतावा किए भूल जाओ…….

“भूतकाल को बिना पछतावा किए भूल जाओ, वर्तमान आत्मविश्वास के साथ जीओ, भविष्य का बिना डरे स्वागत करो और ज़िंदगी को आसान कर लो”
पर क्या हम वर्तमान को पूरा न्याय देते है ? जो लम्हें फ़िलहाल हांसिल है उसे पूरी शिद्दत और खुशी-खुशी जीते है ?
हम कितनी भी कोशिश कर लें वर्तमान में जीने की, पर अतीत के मुट्ठी भर सितारे एहसासों के मन के एक कोने में कैद होते है, वक्त रेत की तरह सरक जाता है और अतीत हमारे अंदर सिमटा रहता है। कुछ एक साँस के बाद कुछ न कुछ पुराने पन्नों पर दिल की नज़र ठहर ही जाती है चाहे सुखद यादें हो या मन को आहत करने वाले गुज़रे लम्हें मन में इत-उत बिखरे पड़े होते है।
किसी को जानने के लिए कुछ ही मिनट लगते है, किसीको पसंद करने के लिए कुछ एक घंटे, किसीसे प्यार भी हम कुछ एक दिन में कर लेते है पर पर किसीको भूलने के लिए पूरी ज़िंदगी लग जाती है। आख़री साँस तक हम अतीत में ही जीते है पर कुछ स्मृतियाँ भूल नहीं पाते।
कितनी कहानियाँ ओर किस्से बनते है, आते है, जाते है लोग हमारी ज़िंदगी में कुछ दोस्त, कुछ दुश्मन, कोई प्यारा, कोई अनमना कुछ वक्त रुक कर कूच कर जाते है सब।
पर हमारे दिल की संदूक में रह जाती है वो सब निशानियां, हम फुर्सत के पलों में मन की संदूक खोलकर उसे वापस जीते है, कुछ इंद्रधनुषी जैसे रंगीन पल हमें हंसाते है तो कुछ अतीत के लम्हें आँखों को नम मी कर जाते है।
उन भिन्न भिन्न लम्हों की प्रजाति से जुड़े होते है हमारे एहसास उसे हम बदल नहीं सकते बस सहला कर झाड़ देते है, फिर हम भी आगे बढ़ जाते है पर उस अतीत को वापस संदूक में संजोकर रख भी लेते है।
ये बिलकुल वही अनुभूति है जो हम अपनी लिखी कविताएँ सालों बाद पढ़ने पर महसूस करते है। कुछ बेहद पसंद आती है, तो कुछ को पढ़ कर लगता है ये बेवजह लिख दी पर फिर भी है तो अपनी ही। वैसे ही अतीत खुशगवार हो या मन को आहत करने वाला हम पूरी ज़िंदगी अतीत में जीते बिताते है। या तो आने वाले भविष्य में जो हमारे हाथ में नहीं उसकी कल्पना में कितने खयाली घोड़े दौड़ा कर सरमाया जोड़ लेते है ख़्वाहिशों का, और जिसको पूरा करने या पाने के लिए वर्तमान को थका देते है, निर्वाण को पूरा करने वर्तमान से सौदा करते है सुकून का।
कुछ लोगों को कहते सुनते है की भूतकाल को भूल जाओ वर्तमान में जिओ पर क्या कोई अपने मन को अतीत की परिधि से और आने वाले भविष्य की कल्पनाओं से बाहर निकाल पाता है ?
नहीं हर इंसान वर्तमान में कम जीता है भूतकाल की जड़ों को कुरेदकर ताजा रखता है ओर भविष्य जो मालूम नहीं उसकी फ़िक्र में वर्तमान को खराब करता है तो कुल मिलाकर आगे पीछे की आपाधापी में हम हांसिल का मजा किरकिरा करते है।
©भावना ठाकर बैंग्लुरू

Back to top button