दुनिया

प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. गंगा प्रसाद विमल का श्रीलंका में सड़क हादसे में निधन

नई दिल्ली। हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार गंगा प्रसाद विमल तथा उनके दो परिजनों का दक्षिण श्रीलंका में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। 80 वर्षीय विमल परिवार के साथ श्रीलंका की निजी यात्रा पर गये थे। विमल के साथ उनकी पुत्री कनुप्रिया और नाती श्रेयस का निधन हो गया। पंजाब यूनिवर्सिटी के रिसर्च फेलो रहे विमल बतौर निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय रहे हैं।

जेएनयू में विभागाध्यक्ष रहे स्व. विमल हर विधा पर लिखते थे। इनकी कई रचनाएँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपती रहीं हैं। अकहानी आंदोलन में इनकी भूमिका अविस्मरणीय रही है। पंजाब यूनिवर्सिटी के डॉ. परेश से भी इनके काफी गहरे संबंध रहे हैं। विख्यात कवि, कथाकार, उपन्यासकार, अनुवादक के रूप में दुनियाभर में इन्हें ख्याति प्राप्त हुई है। कई सरकारी सेवाओं से जुड़े रहकर, बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न इनका व्यक्तित्व बेहद विशाल था।

1939 में उत्तरकाशी में जन्मे विमल के प्रसिद्ध कविता संग्रहों में ‘बोधि-वृक्ष, ‘इतना कुछ, ‘सन्नाटे से मुठभेड़, ‘मैं वहाँ हूँ और ‘कुछ तो है आदि हैं। 2013 में प्रकाशित उनका अंतिम उपन्यास ‘मानुसखोर है। विमल के कहानी संग्रह ‘कोई शुरुआत, ‘अतीत में कुछ, ‘इधर-उधर, ‘बाहर न भीतर और ‘खोई हुई थाती का भी हिंदी साहित्य में अपना स्थान है। उन्हें भारतीय भाषा पुरस्कार, संगीत अकादमी सम्मान समेत अनेक भारतीय पुरस्कारों और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से भी नवाजा जा चुका था।

व्यक्तित्व की विशेषता यह कि इतनी सारी विशिष्टताएँ होने के बावज़ूद भी इनमें किसी भी तरह का दंभ, अहं या सर्वश्रेष्ठ होने का अभिमान तथा भाव कहीं नहीं झलकता था। इनका बेहद रूमानी और संज़ीदगी से भरा चरित्र एवं व्यक्तित्व एकदम सहज और मिलनसार प्रवृत्ति का था। सदैव मृदुभाषी होने के कारण तमाम देशों में इनको सराहा व सम्मानित किया गया।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और केंद्रीय हिंदी संस्थान समेत विभिन्न संस्थानों में प्रमुख जिम्मेदारियां निभा चुके विमल लेखक और कवि होने के साथ ही बड़े समीक्षक तथा अनुवादक भी थे। हिंदी पीयू की ओर से इस महान पुरोधा को शत-शत नमन।

Back to top button