मध्य प्रदेश

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बनाने पर विवाद, सन्यासी अखाड़े ने नियुक्ति को नियम विरुद्ध बताया …

भोपाल. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के देवलोक गमन के बाद बनाए गए उनके उत्तराधिकारियों के नाम पर विवाद उठने लगा है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने हरिद्वार से एक पत्र जारी कर इस नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं। महंत का कहना है कि अखाड़ों के सचिवों को बुलाए बिना ही दोनों पीठों पर यह नियुक्तियां वसीयत को आधार बताते हुए की गई हैं। बिना अखाड़ों की सहमति के यह नियुक्तियां मान्य नहीं हैं। इधर, परमहंसी आश्रम के अनुसार शंकराचार्य घोषित करने में अखाड़ा परिषद की कोई भूमिका नहीं होती और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को विधिवत शंकराचार्य बनाया गया है.

दूसरी ओर सन्यासी अखाड़े और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्रपुरी द्वारा शंकराचार्य की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाने पर झोतेश्वर के परमहंसी आश्रम की प्रतिक्रिया भी सामने आ गई है. परमहंसी आश्रम के प्रवक्ता बृह्मचारी सुबोधानंद ने कहा है कि शंकराचार्य की नियुक्ति में अखाड़ा परिषद की कोई भूमिका ही नहीं होती. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य घोषित करने में विधिवत काम हुआ है और सभी परंपराओं व प्रक्रियाओं का पालन किया गया है. उल्लेखनीय है कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के उपरांत उनके इच्छा पत्र अनुसार उनके दंडी संन्यासी स्वामी सदानन्द सरस्वती को द्वारका शारदा पीठ व स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य घोषित किया गया है, जिनके पट्टाभिषेक महोत्सव की तिथि और मुहूर्त पर विद्वानों में विचार मंथन चल रहा है। इन शंकराचार्यों की नियुक्ति को शंकराचार्य के निज सचिव रहे ब्रह्मचारी और स्वयं दोनों शंकराचार्यों द्वारा शास्त्र सम्मत बताया जा रहा है।

महंत शंकरपुरी का कहना है कि वसीयत के वाचन के दौरान संन्यासी अखाड़ों को नहीं बुलाया गया। जो नियुक्तियां हुई हैं, वह नियम विरुद्ध हैं. उन्होंने अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य मानने से ही इंकार करते हुए शंकराचार्य की सर्वाधिक गरिमा होती है और उनकी नियुक्ति की भी विशेष प्रक्रिया होती है. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य घोषित करने में इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. ब्रह्मलीन शंकराचार्य का षोडसी कार्यक्रम भी विधान से नहीं किया गया। अखाड़े शंकराचार्य की सेना होते हैं, जब उनको ही नहीं पूछा जा रहा है तो वह कैसे इन नियुक्तियों को मान्य करेंगे। उन्होंने कहा कि वह संन्यासी अखाड़ों की बैठक में भी बात रखेंगे और प्रधानमंत्री, गृह मंत्री को भी लिखा जाएगा।

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