लेखक की कलम से

आक्रोश ….

 

है फैली चहुं और,,

आज..

एक अजब ख़ामोशी।

और दिलों में है

अन्याय के खिलाफ

धधकती

क्रोध की ज्वाला ।

 

हां ! पढ़ सकते हो…

तो पढ़ लो

इस ख़ामोशी में छुपी वेदना

और

बेगुनाहों के लिए

न्याय मांगती

आक्रोशित आवाज़ ।

 

गर… अनसुनी रही

तो हो सकता है…

कि यही आवाज़

बन अनियंत्रित भीड़ का हिस्सा

बन न्यायधीश, कर बैठे प्रहार ।

और बन जाए फिर वो

खुद भी गुनहगार।।

 

©अंजु गुप्ता

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