बिलासपुर

यह वह मगध नहीं, तुमने जिसे पढ़ा है …

✍ ■ नथमल शर्मा

कोरोना विषाणुओं ने पूरी दुनिया को संकट में डाल दिया है। अपने शहर को भी इसी संकट में देख रहा हूं। प्रकृति के साथ, अपने शहर के साथ खिलवाड़ करने की सज़ा भी है यह। अपनी अरपा को लगभग गंवा चुके हम लोग तो जैसे कुछ भी समझने को तैयार ही नहीं। बरसों से समझा रहे हैं, लेकिन हम हैं कि तरक्की के नशे में गाफ़िल है और आज अपना शहर घरों में कैद है (जो जरूरी है इस संकट में ) इसी शहर के एक बेटे ने कहा था कि’यह वह मगध नहीं है।’

एक बहुत ही किनारे पर खड़े हैं श्रीकांत वर्मा। मुख्य डाक घर के बिलकुल सामने। वहीं से चार कदम की दूरी पर है बीआर यादव का घर। अब तो यादवजी रहे नहीं। उनके एक समीपी रिश्तेदार शहर के महापौर हैं। कभी पत्रकार रहे यादवजी को बीआर यादव बनाने में श्रीकांत वर्मा की भी खासी भूमिका रही। विकास की दौड़ में भाग रहे शहर में अब शायद ही किसी को फुरसत हो कि श्रीकांत वर्मा की प्रतिमा के पास दो पल के लिए रूक जाएं। इस शहर में पिछले दिनों कमिश्नर रहे अफसर कवि थे (हैं) और एक साहित्यकार इन दिनों कलेक्टर हैं। छत्तीसगढ़ भवन के बाहर खड़े हैं श्रीकांत वर्मा। वीवीआईपी के आने पर भवन की चारदीवारी को पर्दे लगाकर ऊंचा करवा देते हैं पुलिस अफसर। तब पीछे से दिखते नहीं मगध के रचयिता। यूं तो सामने से गुजर जाने वालों को भी नहीं दिख पाते श्रीकांत।

अपने सूनसान शहर में जहां अभी कुछ दिनों पहले तक बेहद शोर था। सामने डाक घर में किसी लिफ़ाफ़े पर टिकट चिपकाते, किसी अपने को चिट्ठी भेजते लोग भी तो अब नहीं रहे। अब तो परदेस तक भी वीडियो काल कर लेते हैं सब। इसी डाक घर में कभी बहुत चिट्ठियां आया करती थी। श्रीकांत वर्मा के लिए भी, बीआर यादव और पूरे शहर के ही लिए। अब तो कोई कुछ नहीं भेजता। श्रीकांत वर्मा होते तो इस नहीं भेजने के दु:ख पर भी कुछ लिखते। वे तो अपनी अरपा को और अपने शहर को याद करते रहे। जहां भी रहे। मगध लिखकर तो कभी दोस्तों की बातें लिखकर। कोरोना विषाणुओं से सूने हुए शहर का दिल तो न जाने कब से ही श्रीकांत वर्मा के लिए सूना सूना सा ही है। एक बेहतर कवि, साहसी पत्रकार होने के साथ ही क्या राजनीति में रम जाना हमें रास नहीं आया ? छत्तीसगढ़ बने 20 बरस हो गए। श्रीकांत वर्मा पर एक ढंग का आयोजन नहीं हो सका। कैसे उम्मीद करें कि नई पीढ़ी अपने इस साहित्यकार पुरखे को जान पाएगी। दिनमान के संवाददाता रहते हुए श्रीकांत वर्मा ने देश दुनिया पर न जाने कितनी रिपोर्ट्स की। कविताएँ रची। हिंदी साहित्य की दुनिया में बड़ा नाम है। अरपा पर या बिलासपुर पर भले ही वे रपट न किए, लेकिन बिलासपुर को रचते रहे। उस समय अरपा तो कलकल बह रही थी।

अब तो तो कोरोना विषाणुओं से डरे और सूने शहर में सब कुछ शांत है। कुछ दिनों बाद आएंगे लोग फिर बाहर। प्रकृति के इस इशारे को शायद ही समझ पाएंगे। इन दिनों तो सब घरों में है और रामायण, महाभारत, व्योमकेश बख़्शी, चाणक्य के साथ रमे हुए हैं। या फिर रोटियां बांट रहे हैं। हर शहर की तरह यहां भी लोगों को मास्क, सेनेटाइजर नहीं मिलते। डाक्टरों, नर्सों, सफ़ाई कर्मचारियों को पीपीई नहीं मिल रहे। पर्याप्त दूरियों के बीच रहते हुए अपनेपन से दूर न हो जाएं कहीं। इसे भी याद रखने का समय है। थोड़ा खुद के भीतर झांक लेने, चिंतन भी तो कर लेने का समय है ये अरपा के लिए कुछ बेहतर सोच लेने का समय भी। श्रीकांत वर्मा को भी और अपने शहर के सपूतों को भी याद करने का समय है ये। याद करते एक सड़क कर दी उनके नाम पर। इतने बड़े साहित्यकार के नाम पर किसी ऑडिटोरियम का नाम कैसे रखते भला ? वह तो पितृपुरूष के लिए ही ठीक होता है। हालांकि इन्हें कभी भूलना ही नहीं चाहिए लेकिन हम तो तरक्की की दौड़ में अंधे हुए दौड़ते रहे न सूखती अरपा की तरफ देखे और न ही जाम होते जवाली नाले को देख सके। प्रकृति के इशारे भी न समझ सके। आखिर कोरोना विषाणुओं ने जब सब कुछ बंद कर दिया है, सबको घरों में कैद कर दिया है तब तो समझें। शायद नहीं समझेंगे क्योंकि नहीं समझना हमारी फ़ितरत में आ गया है। दूर बहुत दूर सात समंदर पार अमरीका गए थे श्रीकांत वर्मा, अपना इलाज कराने। न्यूयार्क में ही आखिरी सांसे ली। वह न्यूयॉर्क भी कोरोना की चपेट में है। जाने से पहले लिख गए थे श्रीकांत वर्मा:-

तुम भी तो

मगध को ढूंढ रहे हो

बंधुओं

यह वह मगध नहीं

तुमने जिसे पढ़ा है

किताबों में

यह वह मगध है

जिसे तुम

मेरी तरह गंवा चुके हो।

मगध लिखते हुए वे अपने बिलासपुर को याद कर रहे थे क्या ? अपने घरों में बैठे-बैठे कभी हम अपने बिलासपुर की बात कहते हैं क्या बच्चों से ? कोरोना के चले जाने के बाद कहेंगे ? सूने शहर में घूमती दूध वालों की बाइकें और सायकिल, सब्ज़ी वालों की आवाज़ भी गूंज रही है। इस भयावह सन्नाटे में शोर के लिए तरस रहे हैं जैसे सब।

–लेखक देशबंधु के पूर्व संपादक एवं वर्तमान में दैनिक इवनिंग टाइम्स के प्रधान संपादक हैं।

Back to top button