हे अश्व …
हे अश्व इतिहास कहानी के,
लाखों नयनों के पानी के
साहस इक बार किया होता,
चेतक की याद निशानी से।।
चेतक पर चित्त किया होता
बरसाती विशाल था नाला था,
तेरी साहस से छूट गया
वो दिवस इतिहास का काला था।।
रण में लड़ती जो रानी थी
दुष्टों पर चढ़ी भवानी थी,
सिर काट-काट कर फेंक
दिया लक्ष्मीबाई मर्दानी थी।।
हल्दीघाटी मैदानों में
भीषड़ रण में वीरानों में,
राणा का साथ नहीं छोड़ा
चेतक चहुंमुखी चट्टानों में।।
ओ चेतक समर भवानी का
लक्ष्मी झांसी की रानी का
सुन सारंगी तू दोषी है
उस अद्भुत अमर कहानी का।।
तू साहस एक बार भरा होता,
नाले के पार उतर जाता
हे पवन गति से उठ जाता
चाहे जीवन से लड़ जाता।।
क्या उस दिन तेरी काठी पर
दुश्मन से लड़ती रानी थी,
क्या पीठ बांधकर दत्तक को
संहार मचाती रानी थी।।
बादल भ्रम में तू भूल गया
हृदय में उतरा धूल गया,
भावी शासक की सेवा को
भीषड़ रण में तू भूल गया।।
नव काल काल की देवी बन
तुझ पर कर रही सवारी थी
सारंगी काश समझा होता
वो घड़ी युगों पर भारी थी।।
तेरे थोड़े से साहस से
भारत का भाग्य सुधर जाता
हे पवन गति से उड़ जाता
नाले के पार उतर जाता।।
©शैलजा तिवारी, पर्वतारोही, शहडोल (म.प्र.)