लेखक की कलम से
मरहम …
प्रिय मेरे
तुम आये थे
मौसम की पहली
झमाझम बारिश की तरह।
मेरा तप्त-दग्ध हृदय
तुम्हारे नेह-रस से
तर बतर हो उठा था।
तुम्हारी नेह की बूँदों ने जब
स्पर्श किया था मेरे मन को
सौंधी सुगंध से
गमक उठा था तन-मन मेरा
मैं विहँस उठी थी प्रकृति की तरह
हरिया उठी थी धरा की तरह।
मैंने अपनी पलकों पर
अब भी संभाला हुआ है
उस शीतल-चंदन से
मधुर अहसास को।
आज जब
समय से मिले घाव
जब टीसते हैं न
मैं उस अहसास को
मरहम की तरह
लगा लेती हूँ……
©सविता व्यास, इंदौर, एमपी