ये प्यार का मौसम …
ग़ज़ल
फिर भीगा सा आज मेरे दिल का मौसम
जाने कैसा रंगा रंगरेज ने दिल का मौसम
फिर मिलेंगे सनम तुझे किसी राह कभी
आएगा क़िस्मत में जब वस्ल का मौसम
इतनी तो तस्कीन मुझे मेरी क़िस्मत पर
ना देगा तू मुझे कभी जुदाई का मौसम
मेरी रूह में जाने कैसी बसी निकहत तेरी
हर रात गुज़ारूँ नशे में तेरे प्यार का मौसम
यूँ उठाए जा रहे सीने में दर्द सदियों से
जाने कैसा दर्द देता है ये प्यार का मौसम
रक़्स करती तनहाइयाँ तेरे ख़्वाबों को सजाए
हर सू दीदार करा देता है तेरे प्यार का मौसम
फिर चले आए तेरी पनाह में मिटने हम
कर दे क़त्ल या सजा दे मेरे प्यार का मौसम
बहुत बेदर्द सा मेरे प्यार का मालिक
बात कुफ़्र की करे तो जले प्यार का मौसम
तेरे लम्स के एहसास जवाँ आज भी रूह में मेरी
आ देख कैसे गुज़ारूँ तेरे प्यार का मौसम
©सवि शर्मा, देहरादून
परिचय : शिक्षा एमए हिन्दी, वर्तमान में सिडकुल डायरेक्टर, तेरह साझां संग्रह प्रकाशित, राष्ट्रीय व स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित कविता, गजल व लघु कथा का प्रकाशन, मुंशी प्रेमचंद सहित कई सम्मान प्राप्त.