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छत्तीसगढ़ के दोनों छोरों से राम वनगमन पथ पर शुरू हुई पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली..

रायपुर (गुणनिधि मिश्रा) । छत्तीसगढ़ के दोनों छोरों से राम वनगमन पथ पर शुरू हुई पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर आयोजन उत्तर और दक्षिण से एक साथ शुरु हुई। यात्राएं 4 दिनों में 1575 किलोमीटर की तय होगी दूरी। राज्य के दो सिरों से क्रमशः उत्तर स्थित कोरिया जिले के सीतामढ़ी-हरचौका तथा दक्षिण स्थित सुकमा जिले के रामाराम से शुरु हुई रैली के दोनों हिस्सों का मिलन 17 दिसंबर की दोपहर रायपुर के निकट स्थित माता कौशल्या की नगरी चंदखुरी में होगा।

पहले चरण में ये आठ स्थल होंगे विकसित

सीतामढ़ी हरचौका

कोरिया जिले में है। राम के वनवास काल का पहला पड़ाव यही माना जाता है। नदी के किनारे स्थित यह स्थित है, जहां गुफाओं में 17 कक्ष हैं। इसे सीता की रसोई के नाम से भी जाना जाता है।

रामगढ़ की पहाड़ी

सरगुजा जिले में रामगढ़ की पहाड़ी में तीन कक्षों वाली सीताबेंगरा गुफा है। देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला कहा जाता है। कहा जाता है वनवास काल में राम यहां पहुंचे थे, यह सीता का कमरा था। कालीदास ने मेघदूतम की रचना यहीं की थी।

शिवरीनारायण

जांजगीर चांपा जिले के इस स्थान पर रुककर भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। यहां जोक, महानदी और शिवनाथ नदी का संगम है। यहां नर-नारायण और शबरी का मंदिर भी है। मंदिर के पास एक ऐसा वट वृक्ष है, जिसके दोने के आकार में पत्ते हैं।

तुरतुरिया

बलौदाबाजार भाटापारा जिले के इस स्थान को लेकर जनश्रुति है कि महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं था। तुरतुरिया ही लव-कुश की जन्मस्थली थी। बलभद्री नाले का पानी चट्टानों के बीच से निकलता है, इसलिए तुरतुर की ध्वनि निकलती है, जिससे तुरतुरिया नाम पड़ा।

चंदखुरी

रायपुर जिले के 126 तालाब वाले इस गांव में जलसेन तालाब के बीच में भगवान राम की माता कौशल्या का मंदिर है। कौशल्या माता का दुनिया में यह एकमात्र मंदिर है। चंदखुरी को माता कौशल्या की जन्मस्थली कहा जाता है, इसलिए यह राम का ननिहाल कहलाता है।

राजिम

गरियाबंद जिले का यह प्रयाग कहा जाता है, जहां सोंढुर, पैरी और महानदी का संगम है। कहा जाता है कि वनवास काल में राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव की पूजा की थी, इसलिए यहां कुलेश्वर महाराज का मंदिर है। यहां मेला भी लगता है।

सिहावा

धमतरी जिले के सिहावा की विभिन्न् पहाड़ियों में मुचकुंद आश्रम, अगस्त्य आश्रम, अंगिरा आश्रम, श्रृंगि ऋषि, कंकर ऋषि आश्रम, शरभंग ऋषि आश्रम एवं गौतम ऋषि आश्रम आदि ऋषियों का आश्रम है। राम ने दण्डकारण्य के आश्रम में ऋ षियों से भेंट कर कुछ समय व्यतीत किया था।

जगदलपुर

बस्तर जिले का यह मुख्यालय है। चारों ओर वन से घिरा हुआ है। यह कहा जाता है कि वनवास काल में राम जगदलपुर क्षेत्र से गुजरे थे, क्योंकि यहां से चित्रकोट का रास्ता जाता है। जगदलपुर को पाण्डुओं के वंशज काकतिया राजा ने अपनी अंतिम राजधानी बनाई थी।

दूसरे चरण के बाद इनका होगा विकास

कोरिया – सीतामढ़ी घाघरा, कोटाडोल, सीमामढ़ी छतौड़ा (सिद्ध बाबा आश्रम), देवसील, रामगढ़ (सोनहट), अमृतधारा

सरगुजा – देवगढ़, महेशपुर, बंदरकोट (अंबिकापुर से दरिमा मार्ग), मैनपाट, मंगरेलगढ़, पम्पापुर

जशपुर- किलकिला (बिलद्वार गुफा), सारासोर, रकसगण्डा,

जांजगीर चांपा- चंद्रपुर, खरौद, जांजगीर

बिलासपुर- मल्हार

बलौदाबाजार भाटापारा – धमनी, पलारी, नारायणपुर (कसडोल)

महासमुंद- सिरपुर

रायपुर- आरंग, चंपारण्य

गरियाबंद- फिंगेश्वर

धमतरी – मधुबन (राकाडीह), अतरमरा (अतरपुर), सीतानदी

कांकेर- कांकेर (कंक ऋषि आश्रम)

कोंडागांव – गढ़धनोरा (केशकाल), जटायुशीला (फरसगांव)

नारायणपुर – नारायणपुर (रक्सा डोंगरी), छोटे डोंगर

दंतेवाड़ा – बारसूर, दंतेवाड़ा, गीदम

बस्तर- चित्रकोट, नारायणपाल, तीरथगढ़

सुकमा – रामाराम, इंजरम, कोंटा

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