लेखक की कलम से
अंजाम …
इंतजाम ऐसा कुछ होने को चला
गुमराह करके वह रोने को चला
बड़ी चालाकी से काम को अंजाम दिया
फिर घर आकर वो सोने को चला
पूछा किसीने तो हैरत में आ गया
बैगरत इंसान वो अंजान होने को चला
काफी पूछताछ हुई सुराग इकठ्ठा हुए
भोली शक्ल करके वो बेहूदा होने को चला
अब किससे पूछे सब तो अपराधी बने पड़े
जो मर गया वो शमशान होने को चला
तुम्हारी बात क्या करें सभी तो दोषी हैं
मूछों को ताव देकर वो अपनी अकड़ में चला
यहां तो ऐसा ही है सब उनका राज है
दलील वही करता और वकालत करने वो चला
अब हम जिये या मारके गिराए उन्हें
अपना तो सारा जीवन इसी हाल में होने को चला …
© विशाल गायकवाड, वर्धा महाराष्ट्र