लेखक की कलम से

जुबान की ताकत …

तेरी महानता कहीं दब न जाये तेरे बड़बोलेपन में

तू इतना भी न बोल के पूरी न कर सके किसी की आस

कितने भी सितारे तूं कर ले जमा कहीं अंधेरे में डूब न जाये तेरा प्रकाश

ये पता तुझे भी है और ये पता मुझे भी है

कि खुद के वचनों में बंधना कितना कठिन हो जाता है

दशरथ जी के वचनों ने क्या गुल खिला दिया था

राज्याभिषेक होते रामजी को वनवास दिला दिया था

सिर्फ इतने पर भी न बनी ये बात

दशरथ जी के वचन रूपी बाण

और लिए उन्हीं के प्राण

इसीलिए हे मानव जबान की शक्ति को पहचान

और न खोना जोश में होश काबू में रखना जबान

फिसलती है ये जबान तो अच्छे अच्छों को कर देती है कठघरे में खड़ा

कितनी सुकोमल होती है ये जीभ

जन्म के साथ आती है प्राणों के साथ जाती है

और निपट अकेली बत्तीस दाँतों के बीच

और निभाती है जीवन भर का रिश्ता

और दाँत जन्म के कुछ समय बाद आते हैं

मौत से पहले ही चले जाते हैं

क्यों? क्योंकि वो होते हैं कठोर

जिसने भी जुबान की ताकत को पहचाना और रखा संयम

मौके के हिसाब से लिया काम

उन्होंने ही दिया है समाज को नेतृत्व और पाया है सम्मान

जितने भी नायक हुए दुनिया मे

उनमे एक गुण ये भी था

की वो होते थे कुशल वक्ता

पहचानी थी उन्होंने जबान की ताकत

और किया सही समय पर सही शब्दों का इस्तेमाल

जितने तुम सार्थक सटीक और सही शब्दों का सहारा लोगे

उतना ही मिलेगा प्यार व सम्मान

और एक दिन तुम भी बन जाओगे महान

तुम भी बन जाओगे महान …

 

©प्रेम चन्द सोनी, फरीदाबाद

Back to top button