धर्म

वही तो अवधधाम है …

दैवीय प्रकृति का,

आर्यावर्त की संस्कृति का,

जो सार्वभौम प्रतिमान है।

वही तो अवधधाम है—-

देवों ने जिसे सिरजाया है,

वेदों ने जिसको गाया है।

हर जीवधारी आकर यहाँ,

पाते हरपल विश्राम है ।

वही तो अवधधाम है—-

रघुकुल की रीति का,

जन जन से प्रीति का।

आस्था और भक्ति का,

जहाँ बसते सुखधाम है ।

वही तो अवधधाम है——

साधु-संतों की वाणी का,

सरयू की निर्मल पानी का।

भगवा ध्वज हाथ ले,

जहाँ शंख का शंखनाद है।

वही तो अवधधाम है—-

जहाँ होते न कभी युद्ध है,

हर आत्मा जहाँ शुद्ध है।

पतितपावन, दुखभंजन,

जो पापनाशनी, मोक्षधाम है।

वही तो अवधधाम है——

शबरी की नवधा भक्ति का,

हनुमंत की दिव्य शक्ति का।

हर मन में बसे सियाराम है,

जहाँ बनते,बिगड़े काम है।

वही तो अवधधाम है—–

जहाँ राम अगाध सिंधु है,

संगठित ,समर्थ हिंदू है।

पत्थर-पत्थर में विराजित,

जहाँ राघवेंद्र श्रीराम है।

वही तो अवधधाम है—–

आज धन्य हुए हर आत्मा,

अब विराजेंगे मेरे परमात्मा।

ऐसे पुण्य धरा को मेरा,

शत- शत नमन, प्रणाम है।

वही तो अवधधाम है—–

 

  ©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)   

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