आलौकिक धुन …
कान्हा तेरी बंसी बन , तेरे ही सुर में खो जाऊँ।
दुनिया की कौतूहल से, दूर कही कान्हा की हो जाऊँ।।
मिल जाए तेरी रेखा जो, इन हाथों की रेखाओं से, बँध जाएगा।
फिर मेरा दिल, तेरे दिल की सीमाओं से,
नैनो से प्यार छलके प्रियतम की बातों में छिप जाऊँ।।
पग -पग पर सारी राहों में, तब प्रेम पुष्प खिल जायेंगे ।।
जब गगन धरा की छाया में, हम दो प्रेमी मिल जायेंगे ।।
हो जायेगा तब मधुर मिलन, इन राहों का उन राहों से
गिरधर तेरी मुरली की धुनअंतकरण में बजती रहे।
मिल जायेंगे गर मेरे सुर जो तेरी अनुपम वाणी से
रच जाएंगे फिर नए गीतइन अधरों की मनमानी से
मै तो चाहूं पल भर को भी पृथक ना हूँ।।
तेरी बांहों से, जो खो जाएंगे ये नयना
अपने गिरिधर की चितवन में तो
कुंज गली की तुलसी बनसिमरू उनको मन ही मन में
मंद पवन का झोंका- झोंका
सुरभित हो गुजरे राहों से
मोहन की छवि मनमोहनी में
रस धुन मे समर्पण प्राण ।
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा