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सीएए की आग में झुलस सकती है महाराष्ट्र सरकार

मुंबई (संदीप सोनवलकर) । नागरिकता कानून संशोधन सीएए और नागरिकता रजिस्टर एनआरसी पर लगी आग से महाराष्ट्र की तीन दलों की आघाडी सरकार भी झुलस सकती है। अगर तीनों दलों ने समझदारी नहीं दिखाई तो आगे यही आग तीनों दलों के बीच दरार पैदा कर सकती है, बीजेपी तो इस आग को हवा दे ही रही है।

कांग्रेस चाहती है कि राजस्थान और पशिचम बंगाल की तरह ही महाराष्ट्र की विधानसभा में भी इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित हो लेकिन शिवसेना इस मुद्दे पर तटस्थ रहना चाहती है। वो जानती है कि अगर ऐसा कोई प्रस्ताव विधानसभा में पारित हुआ तो फिर उसका कोर हिंदुत्व वोट बैंक उससे दूर हो जाएगा। वैसे भी ठाकरे परिवार से अलग हुए राज ठाकरे ने अपनी पार्टी एमएनएस का झंडा भगवा करने के साथ ही सीएए के समर्थन में रैली करने का ऐलान कर दिया है।

दरअसल शिवसेना शुरु से ही मुंबई में अवैध प्रवासियों खासतौर पर बंगलादेशी प्रवासियों के आने का विरोध करती रही है। राज ठाकरे ने तो शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के आदेश पर मुंबई में बंगलादेशी घुसपैठियों के खिलाफ एक सर्वे कर रिपोर्ट भी बनायी थी। जिसमें मुंबई के फुटपाथ खासतौर पर रे रोड, वर्ली, धारावी, रमाबाई अंबेडकर नगर, जुहू जैसे इलाकों की तस्वीरें भी दिखाई थी। ये मुद्दा आम मुंबईकर के मन को छूता है क्योंकि वो पहले से ट्रैफिक और गंदगी से परेशान हैं। अब राज ठाकरे ये मुहिम फिर से शुरु कर रहे हैं जाहिर है अगर शिवसेना ने इस पर स्टैंड नहीं लिया तो मुंबई बीएमसी के अगले चुनाव में बड़ी मुश्किल हो सकती है।

शिवसेना चाहे जो हो जाये किसी भी हाल में 40 हजार करोड़ रुपये की मुंबई महानगरपालिका को खोने तैयार नहीं है जबकि बीजेपी ने अभी से राज ठाकरे के साथ मिलकर मुंबई में अभियान शुरु करने की तैयारी कर ली है। सबसे बड़ी बात है कि विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे के उम्मीदवार नहीं जीते लेकिन कई सीटों पर 10 से 20 हजार तक वोट लेने में कामयाब रहे थे। ये वोट बीएमसी चुनाव में भारी पड़ सकता है।

इस बीच अशोक चव्हाण ने ये कहकर माहौल गरमा दिया है कि शिवसेना ने समझौते से पहले सोनिया गांधी को लिखित तौर पर कहा है कि वो संविधान के दायरे में रहकर ही राजनीती करेगी। इस बयान से शिवसेना की कमजोरी साफ नजर आ रही है। सीएम उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के दवाब के चलते ही अपनी अयोध्या यात्रा भी टाल दी थी।

अब सीएए पर कांग्रेस और एनसीपी खुलकर विरोध कर रहे हैं। ऐसे में शिवसेना को स्टैंड लेने में मुश्किल हो रही है। जाहिर है अगर मतभेद और भी आगे बढ़े तो इस आग में सरकार भी झुलस सकती है। उधर पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस ने कहा है कि अगर शिवसेना पर कांग्रेस और एनसीपी को आपस में भरोसा ही नहीं है तो सरकार कैसे चलेगी। फणनवीस पहले ही सरकार को तीन पहियों वाली गाड़ी कहकर अस्थिर बता चुके हैं।

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