लेखक की कलम से

राही पथ से न भटक…

अडिग मन राह शांत हो,

निश्छल जीवन लेकर चल,

चाहे भटके मन: चंचल,

जीवन नाथ के तू चल,

पथ के राही न भटक

ऐसे पथ में तू चल।।

 

न डिगा अपना नियत,

ऐसे नियति बना कर चल,

मिला जीवन सौभाग्य पूर्ण यह,

दुर्भाग्य गर्त में न डाल के चल,

पथ के राही न भटक,

ऐसे पथ में तू चल।।

 

लक्ष्य ऐसा अडिग कल्पना,

ऐसे मूरत बना के चल,

कल्पना की कामयाबी,

सकार जीवन लेकर चल,

पथ के राही न भटक,

ऐसे पथ में तू चल।।

 

अंतिम पड़ाव उस जीवन की,

ऐसा मूरत बना कर चल,

जन मानस की मन: पटल पर,

ऐसे चित्र उकेर कर चल,

पथ के राही न भटक,

ऐसे पथ में तू चल।।

©योगेश ध्रुव ‘भीम’, धमतरी

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