लेखक की कलम से
सरस्वती वंदना …
मात शारदे ऐसा वर दे,
नित नित मै तोरी स्तुति गांऊ ।
चुन चुन कर नव शब्द सुमन ,
मां शारदे तोरे चरण चढ़ाऊं ।
मात शारदे ऐसा…१
बचपन में मां अक्षर अक्षर,
गढ़कर जैसे शब्द बनाया।
तोरी कृपा से पायी समझ मै,
जीव से माता नर कहलाया।
नेह सदा रखियो मुझ पर,
मां शारदे तोरा पुत्र कहाऊ
मात शारदे ऐसा…२
मै मति अंध हूं भक्त मां तेरा,
राह न सूझे कहां मै जाऊं।
तारो या मुझको बीसराओ,
तोरे दर पर शीश नवाऊ।
खुशियों से झोली भर दे मां,
भर भर अंजुरी खुशियां लुटाऊ।
मात शारदे ऐसा…३
कोष बड़ा मां तोरा निराला,
ज्यों ज्यों खरचू बढ़ता जाए।
पारस संग ज्यों पत्थर मिलकर,
रूप बदलकर स्वर्ण कहाए ।
सिर पर रखिए हाथ सदा मां,
नित नई सीढ़ी चढ़ता जाऊ
मात शारदे ऐसा….४
©रमाकांत सह, झुंझुनूं, राजस्थान