लेखक की कलम से

मेरे सपनों का भारत…

 

फसलों से लहलहाते

खेतों को देखकर

थिरके किसानों के चेहरों पर

पीली हँसी,

उनकी खुशियों से बन सकेगा

मेरे सपनों का भारत।

 

माँए बेटियों को जनकर

गर्वित हो चल सकें

उनके गर्व की ओज़ से बन सकेगा

मेरे सपनों का भारत।

 

रूखा-सूखा खाने वाले

भरपेट सो सकें

उनके भूख की तृप्ति से बनेगा

मेरे सपनों का भारत।

 

पूंजीवादियों को आ जाये शर्म

बाँट दें निर्धनों को थोड़ा धन

ग़रीबी पे विजय से बन सकेगा

मेरे सपनों का भारत।

 

समाजवाद का हो सत्ता पर आधिपत्य

समता की परिकाष्ठा हो विद्यमान

ऐसी जन जागृति से ही बन सकेगा

मेरे सपनों का भारत।

 

तीसरा लिंग सम्मान से पहुँच सके

ओहदे पर बड़े

और महिलाएं उतार सकें हिज़ाबें

उनकी तरक़्क़ी से बन सकेगा

मेरे सपनों का भारत।

 

विकसित हों मेरा राष्ट्र

अपने संस्कारों व संस्कृति को सहेजें

सब को मिल सके सम्मान

सब का हो विकास

सांप्रदायिक दंगों से दूर

मानवता को जीवनशैली बना सकें

तब ही बन सकेगा

मेरे सपनों का भारत।

 

तब ही बन सकेगा

मेरे सपनों का भारत।

©वर्षा श्रीवास्तव, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश

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