लेखक की कलम से

उधार की खुशियां …

 

 

ग़ज़ल

 

जो आज है वो गवारा कभी सवाल न था

बदलते रिश्तों को जीना मेरा ख़याल न था

 

उधार में ही मिली हैं ये सारी ख़ुशियां भी

तुम्हारा साथ में होना कोई कमाल न था

 

मिली है दौलत-ए-ग़म भी तुम्हारे प्यार में ही

वगरना इतना बुरा भी हमारा हाल न था

 

बदलते वक़्त ने हमको सिखाया करतब ये

बदल लिया जो मुखौटा तो फिर वबाल न था

 

लगे थे कितने ही पैबंद रिश्ते-नातों में

सो तुरपनों के उधड़ने पे कुछ मलाल न था

 

©पूजा मिश्रा, अयोध्या, उत्तरप्रदेश          

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