रायपुर। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र आदिवासियों की विलुप्त होती सात प्रजातियों के पढ़े लिखे युवाओं को अब शिक्षक व बाबू बनाएगे। बरसों से इनके लिए योजनाएं तो बनती रहीं पर कागजों में ही सीमित रहीं। इनके समाज से जुड़े लोगों का कहना है कि पहली प्राथमिकता इन्हें कुपोषण से मुक्त कराने की होनी चाहिए। पंडो और भूंजिया को भी राज्य सरकार ने विलुप्त जनजातियों में शामिल कर लिया है। अब तक आदिवासियों की पांच प्रजातियों को बैगा पहाड़ी कोरवा, कमार, अबुझमाड़िया व बिरहोर को ही राष्ट्रपति संरक्षित प्रजातियों में गिना जाता था।
अब राज्य सरकार ने इसमें दो और प्रजातियों पंडो व भूंजिया को भी विशेष पिछड़ी जनजातियों में शामिल किया है। पंडो सूरजपुर, बलरामपुर व सरगुजा जिलों में मिलते हैं। इनकी जनसंख्या 31 हजार 814 है। जबकि भूंजिया गरियाबंद व धमतरी जिले में मिलती है। इनकी आबादी 7 हजार 199 है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने घोषणा की है कि इन जनजातियों के युवाओं को सहायक शिक्षक व सहायक ग्रेड-3 बनाकर सरकारी नौकरी दी जाएगी। इस विशेष भर्ती अभियान में उन्हें शैक्षणिक योग्यता व शारीरिक मापदंड में विशेष छूट मिलेगी।
इधर, जानकार बताते हैं कि पंडा सरगुजा में और गरियाबंद में भुंजिया विलुप्त हो रहे हैं जबकि धर्मजयगढ़ में पाए जाते हैं। कोरबा जिले के लेमरू इलाके में बिरहोर जनजाति के लोग बंदर भी खाते देखे गए हैं। पहाड़ों में रहने की वजह से इन जातियों को पहाड़ी कोरवा कहते हैं। तीर-धनुष इनके हथियार हैं। ये छोटे जीव-जंतुओं का भी शिकार करते हैं। मैदानी इलाकों में ये जनजातियां कोदो-कुटकी की खेती कर जीवन-यापन करते हैं। पिछले दिनों अफसरों का एक दल जब इन विलुप्त हो रही जन जातियों की दशा जानने निकला तो पता चला कि इनमें से कई लोग कुपोषण के शिकार हैं।