लेखक की कलम से

ख्वाब…

 

कब पतझड़ ने रोका

कोंपल का स्वागत करने को

कब अन्धेरा बोला

मत

रोशनी को छनकर आने दो

खिड़की के शीशे पर

सूर्य की परछाई का प्रतिबिंब

अच्छा लगने लगा है

जो रह गया है पास हमारे

सहेज कर रखने का फ़ैसला किया है ।

कहीं पढ़ी थी एक कहानी

सबकी सोच अलग थी,

पर थी निराली वो कहानी।

 

एक समंदर में बच्चे की चप्पल बही

समन्दर चोर है लिख दिया

रेत पर उसने

मछुआरे को मिली

मछलियाँ ढेर

समन्दर पालनहार है

लिख दिया उसने भी

रेत की स्लेट पर

जिसके प्रिय को

समन्दर ने डुबो दिया

खूनी है ये समन्दर

यह नाम दर्ज करा दिया

जिसको सीप में मिला मोती

उसके लिए समन्दर रेत पर

दानवीर कर्ण हो गया ।

अचानक आई लहर ने मिटा दिया सब लेख

खड़ा रहा समन्दर शान्त

ना बोला ना कोई शिकायत

 

सीख लें समन्दर से

ना विचलित कर आज

खुद को

हार-जीत,खोना-पाना,

सुख-दुख,

यही जीवन है

कुछ ज़रूरतें पूरी और

कुछ ख्वाब  अधूरे हैं

 

©सावित्री चौधरी, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश   

 

 

 

Back to top button