आंसू …
आंसू की नहीं कोई ज़ुबां , बेज़ुबां होकर भी कह देते सारी दास्तां ।
कभी ये होते खुशी के , कभी ग़म के , तो कभी कहते इन्हें लोग मगरमच्छी आंसु ।
बह जाते जो आंसु बन जाते वो खारा पानी , जो दफ़न हो जाए आंखों में ,
वो दिल में बना देते एक तुफानी कहानी ।
हो किसी का जन्म तो देख जन्मते बच्चे को परिवार की आंखों से बहते खुशी के आंसु ,
हो कोई मृत्यु तो विरह में आंसू से भर जाते नयन ।
औलाद की आंख से गिरा ग़र आंसू , मां के भी थम नहीं सकते आंसू ।
अगर रहे पलकों पे तो रूक नहीं सकते आंसू , बह कर दरिया बना देते आंसू ।
लगे बच्चे को भूख तो निकल आते आंसू ,
लगे कोई चोट तो भी बह जाते आंसू ।
ना हो ज़िद पूरी तो भी आते आंसू ।
जब दिल सहे ना जुदाई यार की तो कहानी कह जाते आंसू ,
किसी को देखकर दु:खी , दु: ख के आते आंसू ।
हो जाए गलती कोई तो पश्चाताप के कहलाते आंसू ,
दिल की सच्चाई बयां करते आंसू ,रूठे सजन को मनाते आंसू ,
पराए को भी पल में अपनेपन का एहसास कराते आंसू ।
हो जाए जब कामना पूरी तो संतुष्टि दे जाते आंसू ।
आंसू ना देखे नर- मादा , ना देखे बुढ़ा – जवान , इसे ना आए नज़र गरीब- अमीर ,
ना करें ये किसी पे रहम , इसकी सबमें एक जैसी पहचान ।
यारों आंसू तो है आंसू , एक ही रंग और रूप लिए है आंसू।
नहीं कोई छल – कपट रखते आंसू , बहुत ही मासूम होते आंसू ।
©प्रेम बजाज, यमुनानगर