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अब बीजेपी के चाणक्य पर उठेंगे सवाल…

नई दिल्ली (संदीप सोनवलकर) । दिल्ली में बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह का हर दांव नाकाम रहा। पन्ना प्रमुख से लेकर शाहीन बाग तक हर दांव को अरविंद केजरीवाल की जमीनी पकड ने हरा दिया। बीजेपी जो हवा बनाने की कोशिश कर रही थी वो चैनलों तक ही सीमित रही जमीन पर तो केजरीवाल के वालिंटियर ही कामयाब दिखे।

बीजेपी का चाणक्य….

अमित शाह भले ही बीजेपी अध्यक्ष पद से हट गये और खुद की जगह पर जे पी नडडा को चेहरा बना दिया लेकिन दिल्ली के चुनाव का हर फैसला अमित शाह का ही था। अमित शाह ही हर हाल में दिल्ली जीतना चाह रहे थे। इसके लिए जेएनयू के बवाल, जामिया में पुलिस की हरकत, शाहीन बाग के करंट से लेकर एनआरसी तक सब बातें कही लेकिन जनता ने बता दिया कि काम बोलता है। केजरीवाल ने सबसे बडी चाल ये चली कि वो बीजेपी के एजेंडे पर गये नहीं। बीजेपी ने केजरीवाल को कई बार शाहीनबाग में फंसाने की कोशिश की लेकिन केजरीवाल और उनकी पार्टी चुप ही रही। यहां तक कि जब हनुमान चालीसा पर भी बवाल हुआ तो केजरीवाल को ही फायदा मिला।

असल में बीजेपी ने पैराशूट से नेता तो उतारे पर जमीन पर कोई बडा चेहरा उसके पास नहीं था। मनोज तिवारी नेता कम कलाकार ही ज्यादा लगते रहे। सपना चौधरी के साथ उनकी जुगलबंदी से मनोरंजन तो खूब हुआ लेकिन वोट नहीं मिला। बीजेपी ने अगर डा. हर्षवर्धन जैसे पुराने नेता को साथ लिया होता तो शायद बात कुछ बन सकती थी। दिल्ली के चुनाव का साफ संदेश है कि अब सिर्फ हिंदुत्व या बहुसंख्यकवाद के मुददे पर और मोदी के चेहरे पर बीजेपी को बढत नहीं मिलेगी। उसे तो काम करके ही दिखाना होगा।

केजरीवाल ने एक बात और साबित कर दी कि चुनाव यंत्रणा में वो बीजेपी से कम नहीं। बीजेपी ने प्रचार के लिए मुख्यधारा के चैनलों का जमकर इस्तेमाल किया यहां तक कि कुछ बडे एंकरों को शाहीन बाग भेजकर विवाद कराने की कोशिश भी। शाहीन बाग में गोली तक चली लेकिन आम आदमी पार्टी सोशल मीडिया के सहारे लोगों तक पहुंचती रही। दूसरा नुक्कड. सभाओं और फ्लैश माब जैसे प्रयोग से वो लोगों तक पहुंचती रही। आखिरी दांव केजरीवाल ने मुफ्त बिजली और पानी का ही चल दिया।

दरअसल नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी जैसे सुधारों के चलते बाजार में आयी मंदी से आम आदमी परेशान है। उसे लग रहा था कि बजट में कुछ सहारा मिलेगा लेकिन बीजेपी ने वो भी नहीं दिया। दिल्ली मे सरकारी कर्मचारी बडी संख्या में हैं जो छोटी कालोनियों में रहते हैं वो भी बिजली पानी के बढते बिल से परेशान थे। केजरीवाल ने स्कूल और अस्पताल भी सुधार दिये। ऐसे में बीजेपी का राष्ट्रवाद और हिंदुत्व परवान नही चढ सका।

दिल्ली चुनाव के पांच सबक

  • 1.    चुनाव में चेहरा सबसे अहम है। चेहरा निर्णायक हो।
  • 2.    लोकल मुद्दों को दरकिनार नहीं कर सकते।
  • 3.    बाहरी नेता बस माहौल बनाते हैं।
  • 4.    संगठन का सतत संपर्क जरुरी है।
  • 5.    अब मीडिया से चुनाव नहीं जीता जा सकता।
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