लेखक की कलम से
ठौर पाना है …
विघ्नों में चलते जाना है
हमको लहरों सा गाना है
चाहे जितनी बाधाएं आए
बस यूंही कदम बढ़ाना है
पाना मंजिल ही तो है बंदे
नित्य नव राहअजमाना है
ज्ञानदीप ज्वलित कर बंदे
आलोकित जग कराना है
संघर्ष पथ पर चलना है बंदे
यही सीख हरक्षण अपनाना है
कंकड़ी राहे जीवन की है बंदे
बस उस पर हरपल मुस्कुराना है
मन हुआ परिंदा जीवन भर
एक दिन तो ठौर ही पाना है …
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता