लेखक की कलम से

खेत बने प्लॉट

उत्तराखंड जो अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है। आज वो स्मार्ट तो हो रहा है, मगर अपनी खूबसूरती खोता जा रहा है।जो अपनी हरियाली के लिए प्रसिद्ध था।अब वहां सिर्फ एक प्रतिशत ही हरियाली बची है। बाहर के लोगो का यहां आना और आके यही बस जाना भीड़ को तो बड़ा ही रहा है, साथ ही साथ पर्यावरण को भी असंतुलित कर रहा है।

कुछ सालों से यकायक यहां पे प्लॉटिंग शुरू हो गई है। ये वो जगह है जहां पे खेती हुआ करती थी। किसानो ने अपने खेतों को बेचना शुरू कर दिया है,जिन्हें  बाहर के लोग आके खरीद रहे और प्लाटिंग करके मनमाने पैसों में बेच रहे।

इससे एक परेशानी की बात ये है अगर कोई खेती ही नहीं करेगा तो देश में अनाज कहा से आयेगा?शायद बेरोजगारी बढ़ने का एक कारण ये भी है।अगर युवा पीढ़ी आधुनिक संसाधन जुटाकर खेती ही करे तो अधिक अनाज का उत्पादन हो सकता है और बेरोज़गारी जैसी विशाल समस्याओं से बचा जा सकता है।

दूसरा खेतों को बेचकर प्लॉट या फ्लैट बना के उत्तराखंड की शांति को भंग करना और उत्तराखंड में भीड़ को बढ़ाना, साथ ही  साथ पर्यावरण के साथ जिस तरह से खिलवाड़ हो रहा है क्या ये उचित है….?

क्या हमलोग किसी बड़े विनाश की तरह तो नहीं बढ़ रहे। जिसका रास्ता विकास से होके जाता है। फोर लेन के लिए पेडों की बलि देकर सड़को का चौरीकारण,हर जगह  लोगों को बसाना क्या ये उचित है…?ये फोर लेन विकास को नहीं रफ्तार को ही बढ़ा रही है।इससे आम आदमी का कहां विकास हो रहा है या उनकी समस्याओं का समाधान हो रहा है।शहर की सड़को की हालत, नालियों का निकासीकरण ठीक नहीं हो पाने से बरसात में जलभराव की स्थिति उत्पन्न कर रही है जो बीमारियों को बुलावा दे रही है।बहुत सी आम लोगों की आम समस्याएं सुलझाना ही शायद विकास है…।

 

©झरना माथुर

 

Back to top button