पेण्ड्रा-मरवाही

प्रकृति से छेड़छाड़ से परहेज करें …

आलेख

नमस्कार मित्रों !

ईश्वर ने इस जगत की रचना की उन्होंने पृथ्वी पर जीवन बसाया। उसका आधार उन्होंने प्रकृति को बनाया। प्रकृति अर्थात पंच तत्वों से निर्मित जीव या निर्जीव सभी का संतुलन, सामंजस्य। इसी के अधीन था मानव भी। किंतु पिछले कई दशकों से जब मनुष्य ने सृष्टि की सुंदर संरचना के आधार प्रकृति को अपने अधीन करने की धृष्टता करनी चाही है तब तब प्रकृति ने स्वयं उत्तर दिया है। आज फिर प्रकृति ने स्वयं उत्तर दिया है और लोग गुलाम होकर घरों में कैद हैं। प्रकृति पूरा हिसाब करती है। हमने जो कष्ट प्रकृति को दिए उसका ऋण तो चुकाना ही पडे़गा।

आज इस कोरोना काल में हम जब घरों में कैद हैं तो विचार करें कि हमने कहाँ गलत किया और उसे कैसे सुधार सकते हैं। हमने इस संसार को खूब दूषित किया। लॉकडाउन के बाद जब हम घरों से बाहर आएँगे तो हमें ये प्रकृति पुनः स्वच्छ व ताजी मिलेगी। तब जिम्मेदारी हमारी होगी कि हम उस स्वच्छ तथा संतुलित पर्यावरण का आदर करें। उसे वैसे ही स्वच्छ बने रहने दें। प्रकृति से छेड़छाड़ से परहेज करें।

इसके अलावा जो सबसे जरूरी है। अपने मन तथा विचारों का प्रदूषण दूर करें। इसके लिए सहायक हमारा परिवार ही है। आज हमने रिश्तों की अहमियत समझी है परिवार के महत्व को जाना है। एक ही घर में रह रहे अजनबियों से हमने मुलाकात की है। हम परिवार के साथ ये सुनहरे पल बिताने के साथ ही समाज में फैले विष को समाप्त कर सकते है। समाज पुनः एक नयी दिशा और दशा की ओर अग्रसर हो आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। अपनी बुराईयों पर काबू पाएँ। 

एक जो बात सभी की चिंता का कारण है अर्थव्यवस्था। 

तो ईश्वर सबका संतुलन बनाता है। किंतु आज अर्थव्यवस्था के नाम पर शराब दुकानों का संचालन प्रारंभ कर दिया गया है, जो कि अत्यंत निंदनीय है। यह कहने में लोगों को क्या लज्जा आनी चाहिए, कि देश की अर्थव्यवस्था शराब पर ही टिकी है, फिर क्या करदाताओं का देश के विकास में कोई योगदान नहीं ॽ यह सब केवल सरकारों का अपना खजाना भरने की जुगत है। मुझे यह दृश्य देखकर सुदामा पाण्डे धूमिल की यह पंक्तियाँ याद आती हैं –

न कोई प्रजा है न कोई तंत्र है,

ये आदमी के खिलाफ आदमी का खुला षडयंत्र है…

शराबबिक्री को अर्थव्यवस्था का आधार बनाने वालों, तुमने देश के करदाताओं का भी अपमान किया है। 

जनता ये सोचें कि इतने दिन काम व्यापार बंद रहा, आय बंद रही, तो यह भी सोचें कि व्यय भी बंद रहा। पेट्रोल, डीजल खर्च, होटलिंग खर्च, बड़े-बड़े आयोजनों के खर्च, सामाजिक व्यवहारों का व्यय, पार्टियों का खर्च, खरीददारी का खर्च सबकुछ तो बंद था। सिर्फ घर पर रहकर खाना-पीना और आजकल के मोबाईल के डाटा पैक के अलावा सभी खर्चे बंद थे। तब नुकसान कहाँ ॽ

सकारात्मक रहें सकारात्मक सोचें। विश्व आज इस महामारी से निदान के लिए भारत की ओर टकटकी लगाए देख रहा है। एक भारतवासी होने पर यह हमारा भी कर्तव्य है कि हम देश के सार्थक उन्नति तथा पुनरूत्थान के लिए अपना योगदान करें। ईश्वर ने हमें एक अवसर दिया है अपनी जिंदगी को आगे पीछे ऊपर नीचे हर तरफ से देखकर उसे नवीन आकार देने का। एक नयी शुरुआत आपकी प्रतीक्षा में है। पूरी ऊर्जा और क्षमता के साथ आईए अपने देश को ऐसा बनाएँ जैसा हमने अपने सपने में अपना भारत देखा है। जिसे हम हकीकत में देखना चाहते थे। आज वही समय है कि अपने सपनों के भारत के नव-निर्माण के लिए अपना योगदान दें तथा लॉकडाउन खुलने के बाद अपने हर काम में देश और देश की उन्नति को सदैव केंद्र में रखें। सकारात्मक संदेश की इन पंक्तियों से विदा करें-

घर में लौटी है रिश्तों की मीठी महक

स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण हो रहा

एक नयी सोच लेकर के भारत चला

विश्व भर का गुरु ये वतन हो रहा 

सादर धन्यवाद

©आशुतोष दुबे, पेंड्रा

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