लेखक की कलम से
एक और नया वर्ष पुराना हो गया
एक और नया वर्ष
पुराना हो गया
खुशियों का जो रंग था
बेगाना हो गया
दुःखों की जो बदरी थी
छंटते-छंटते रह गई
मन में जो अरमान जगे थे
फिर से अधूरे रह गए
अभिलाषा का नया घरौंदा
फिर से ढह गया
एक और नया वर्ष
पुराना हो गया..।।
सबने मिलकर
ख़्वाब बुने थे
नूतन वर्ष मनाएंगे
जीवन के जो
रिक्त पृष्ठ हैं
रंगों से उसे सजाएंगे
पर ख़्वाब अनूठे रंगो का
अधूरा रह गया
एक और नया वर्ष
पुराना हो गया..।।
नये वर्ष में फिर से
नये ख़्वाब बुने जाएंगे
वही अधूरी अभिलाषा के
नाम लिए जाएंगे
वही पुरानी दिनचर्या में
अपना कौन पराया है
फिर से नई उमंगे लेकर
नया वर्ष ये आया है
नया वर्ष ये आया है..।।
©विजय कनौजिया, अम्बेडकर नगर, यूपी