छत्तीसगढ़
देशहित के बात करव …
अपन-बिरान, कोनो ल,
झन करहू।
सब झन ल एके मान रे।।
जिंयत-मरत ले, संग झन छूटे।
चाहे छूट जाए, परान रे।।
कोन बैरी, कोन हितवा संगी,
चलव येकर पहिचान करव।
बिनता के गोठ ल छोड़ के संगी,
सुनता के जलत मसाल धरव।।
तोर -मोर के भाव ल छोडव,
देशहित के बात करव।
बने-बने मोर देश ह राहय,
अन्ते-तंते झन काम करव।।
सुवारथ ल छोड़ के संगी,
परमारथ के काम करव।
संझा-बिहनिया, दुनो जुवरिया,
धरम के आघू -पाछू चलव।।
जइसन करबे, तइसन भरबे,
ये दुनियाँ के रीत रे।
दाई-ददा अउ नोनी-बाबू,
चल गाबोन मया के गीत रे।।
©श्रवण कुमार साहू, “प्रखर”, राजिम, गरियाबंद (छग)