छत्तीसगढ़

मौली माता मंदिर में हजारों की संख्या में जगमगाए आस्था दे दीप, शारदीय नवरात्रि….

राजिम. हर साल शारदीय नवरात्रि (क्वांर नवरात्रि) के शुभ अवसर पर अंचल के सैकड़ों लोगों द्वारा मनोकामना ज्योतिकलश प्रज्वलित की जाती है. विजयदसमी पर्व के बाद तेरस को फिंगेश्वर में शाही दशहरा पर्व मनाने की परम्परा है. फिंगेश्वर राज घराने परिवार के राजा दलगंजन सिंह ठाकुर का निधन विजयादशमी के दिन होने के कारण फिंगेश्वर का दशहरा तेरस दिन 27 ओकटुंबर को मनाया जावेगा. पावन पर्व पर फिंगेश्वर में मां मावली की विशेष पूजा अर्चना और ध्वजारोहण कर रात्रि में प्राचीन परंपरा के अनुसार विजय जुलूस का आयोजन पूरे रीतिरिवाजों, साज-सज्जा व श्रद्धा भक्ति, अस्त्र-शस्त्र, दलबल सहित पूरे रात्रि भर हजारों लोगों द्वारा इस जुलूस में भाग लिया जाता है. वहीं दशहरे के दिन राज शाही ठाट के साथ मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना महाआरती किया जाता है. अंचल के भक्तों द्वारा गुरुवार के दिन की पूजा अर्चना विशेष आकर्षण का केंद्र रहती है सारा माहौल मेले सा तब्दिल हो जाता है. फिंगेश्वर के वर्तमान सर्वकार राजा नीलेन्द्र बहादुर सिंह के साथ मंदिर ट्रस्ट कमेटी के शिव कुमार सिंह ठाकुर, रमेन्द्र सिंह, देवेंद्र बहादुर सिंह, पुखराज सिंह, यशोधरा सिंह ध्रुर्वे, शिवाजी राव ध्रुर्वे, आनंद वर्धन सिंह ठाकुर, पंकज शर्मा, आदित्येंद्र बहादुर सिंह, रवि तिवारी, के कुशल संचालन में मंदिर का विधिवत पूजा पाठ और अन्य गतिविधियां संचालित होती है. मां मावली की पूजा आज भी हलबा जाति के लोगों के द्वारा की जाती है. मां मावली के दरबार में श्रद्धा और आस्था के साथ पूजा करने वाले भक्तों की मनौती पूरी होने की प्रसिद्धि मां मावली को प्राप्त है.

शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ होते ही धर्म नगरी फिंगेश्वर के प्रसिद्ध मौली मां मंदिर में मनोकामना दीप प्रज्ज्वलित करने श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए इस साल मौली मंदिर परिसर के अलावा शीतला मंदिर फिंगेश्वर के भवन में मनोकामना दीप प्रज्ज्वलित किये गये हैं. प्राचीन मान्यता और किवदंती है कि ईसा पूर्व फिंगेश्वर 84 राज क्षेत्र के पूर्व जमींदार और दिवंगत राजा ठाकुर दलगंजन सिंह के पूर्वज भूतपूर्व राजा मनमोहन सिंह अपने शस्त्र दल बल सहित राजिम से फिंगेश्वर आ रहे थे कि रास्ते में पड़ने वाले ग्राम किरवई के मुख्य मार्ग पर सड़क किनारे एक वृद्ध स्त्री सफेद बाल और सफेद वस्त्र में अत्यंत ही नाजुक अवस्था, भरी दोपहरी, चिलचिलाती धूप में मिली. उन पर अचानक राजा की नजर पड़ते ही उसने अपने सैनिकों को तुरंत निर्देशित किया कि एक अनजान वृद्ध स्त्री सफेद कपड़ों में भरी दोपहरी में यहां क्यों और कैसी बैठी है. राजा के द्वारा दिये गये निर्देश का पालन करते हुए सिपाहियों के तलब करने पर स्त्री ने कहा कि इतने सारे घोड़े में अगर एकाद घोड़ा खाली हो तो मुझे भी फिंगेश्वर ले चलो.

इतना कहते ही सफेद घोड़ा खली करा कर राजा ने उस वृद्ध स्त्री को घोड़े पर सवार करवाया. आश्चर्यजनक बात यह रही कि उक्त स्त्री की घोड़े पर सवार होते ही हट्टा कट्टा घोड़ा पसीने से तरबतर हो कर लड़खड़ाने लगा. देखते ही देखते घोड़े पर सवार सफ़ेद परिधान पहने स्त्री विलुप्त हो गई. इतना होने के पश्चात राजा का काफिला घोड़े सहित फिंगेश्वर पहुंचा. विश्राम के दौरान अर्धरात्रि में राजा को स्वप्न आया. स्वप्न में वृद्ध सफेद लिबास पहने स्त्री ने कहा कि मैं यहां बहुत दूर से थकी हारी पहुंच चुकी हूं. मैं बस्तर की मावली मां हूं. अतः आप फिंगेश्वर में झोपड़ीनुमा मेरे लिए निवास बना दो तो मैं उसमें रह लूंगी. स्वप्न की इस घटना को राजा ने अपने सिपासलाहकार पुरोहितों पंडितों और दरबार के विद्वानों को बतलाया. सभी ने विचार विमर्श कर फिंगेश्वर में मंदिर निर्माण कराया. इसके बाद पुनः देवी ने स्वप्न में आकर कहा कि आपको मैंने झोपड़ी खदरनुमा बनाने कहा था, न कि भव्य मंदिर. फिर राजा द्वारा बनाये गये भव्य मंदिर में उनकी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई. जबकि मूलतः आस्था श्रद्धा का प्रतीक स्वरूप मां का निवास स्थान खदरनुमा झोपड़ी में आज भी विराजमान है.

देवी की महत्ता के बारे में उल्लेख करना जरूरी होगा कि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत उसी बीच अन्य राज्य से फिंगेश्वर के राजा दलगंजन सिंह के ऊपर घातक हमला होने पर दोनों पक्षों में जमकर लड़ाई छिड़ गई. युद्ध में सबसे बड़ी बात यहां देखने को मिली कि विपक्षी योद्धा के पास युद्ध मैदान में एक ऐसा ढपली था जिसे बजाने पर उसके घायल सैनिक पुनः लड़ने भीड़ जाता था. उक्त घटना से हैरान व आश्चर्य चकित परेशान राजा ठाकुर दल गंजन सिंह अपने आपको युद्ध क्षेत्र में कमजोर होते देख आराध्य देवी मां मावली का स्मरण कर मन्नतें मांगी कि मां मुझे इस युद्ध में विजयश्री दिला दो तो मैं आपके समक्ष 21 बली दूंगा. इतना कहने पर साक्षात मां मावली प्रकट हो कर बोली सबसे पहले उस ढफली बजाने वाले पर हमला कर और उसकी ढफली फोड़ दे. तो सारी समस्या से निजात पा जाओगे. माता के निर्देश पाते ही राजा ने तुरंत ढफली वाले पर हमला कर ढफली फोड़ दी. तत्पश्चात ढफली के फूटने पर घायल नवजवान योद्धा उठने के लायक नहीं रहे. देखते ही देखते राजा द्वारा हमला कर विपक्षी को परास्त करने लगे.

मां मवली को दिये वचन के अनुसार राजा युद्ध क्षेत्र से लाकर 20 लोगों को काटकर मां मवली को अर्पित कर दिया. इतने में सारे विपक्षी भाग खड़े हुए कि राजा मां मावली के नाम लेकर धड़ाधड़ गर्दन काट रहे हैं. 20 लोगों की बलि देने के पश्चात शेष नरबली राजा द्वारा प्रतिवर्ष मां मवली को देते रहे. उसके बाद इस क्रम को 3 वर्ष तक किया. इसके बाद हर तीन साल में नरबली की प्रथा को तब्दील कर भैंसा का स्वरूप में प्रत्येक तीन वर्ष पश्चात देते रहे. वर्तमान में भैंस के एक कान का छोटा हिस्सा काटकर छोड़ दिया जाता है. आस्था और श्रद्धा के प्रतीक मां मावली में आज भी पूरे छत्तीसगढ़ सहित प्रांतों के दूर दराज से सैकड़ों लोग मन्नतें व मुरादे मांग कर अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. आज भी श्रद्धालुओं द्वारा मनौती पूरे होने पर आस्था के दीप प्रज्वलित किये जाने के साथ ही दशहरा के दिन माता के दरबार मे मत्था टेक कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं.

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