धर्म

बरमान घाट में तुम्हीं भवानी, महिमा तुम्हरी अमित बखानी …

नर्मदा परिक्रमा भाग – 6

 

अक्षय नामदेव । मंडला महाराजपुर संगम घाट से रवाना होकर आगे बढ़ने लगे। मंडला जिले के गांव आदिवासी जनजाति बाहुल्य गांव है। अलग-अलग क्षेत्र के गांवों की अलग अलग विशेषता होती है उसी तरह मंडला जिले के गांव भी अपनी अलग पहचान प्रगट कर रहे थे। गांव में स्थित मकानों की छप्पर की ढाल दार ऊंचाई एवं उसमें लगे खप्पर अपनी अलग कहानी कह रहे थे।अभी 11:00 बजे ही होंगे कि धूप ने अपनी प्रचंडता दिखानी शुरू कर दी थी। जब मार्च के महीने में यहां इतनी गर्मी है तो आगे मई और जून में क्या हालात होंगे ? अब समझ में आया की छप्पर की अधिक ऊंचाई ग्रामीणों ने गर्मी से बचने के लिए ही की है। छप्पर का तीव्र ढाल यहां अत्यधिक बारिश होने की भी सूचना संकेत प्रगट करता है। मंडला के आगे के रास्ते में पेड़ पौधे काफी कम है। जो कृषि भूमि है उसमें दूर तक गेहूं की फसल पीलापन ओढ़े लहलहा रही थी। वैसे तो अमरकंटक के बाद  करंजिया गोरखपुर से ही गेहूं की बंपर खेती दिखती है परंतु मंडला पहुंचते-पहुंचते गेहूं के फसल की गुणवत्ता पूर्ण पैदावार अलग ही दिखाई देती है। गेहूं के बंपर पैदावार वाला क्षेत्र प्रारंभ हो गया था। जबलपुर के नर्मदा के दक्षिण तटों से दूर होते हुएदअब हम घंसौर मार्ग पर थे। इस इलाके में कुछ समय पहले ही सड़कों का नव निर्माण हुआ है ऐसा प्रतीत होता है। घुमावदार पहाड़ी सड़क के बाद कुछ मैदानी इलाका पारकर हम घंसौर तिराहे पर पहुंचे। मैंकला बेटी ने कुछ खाने की इच्छा जताई तो वही किनारे स्थित एक गुमटी नुमा होटल में हमने पोहा और जलेबी खाई और चाय पी। कुछ देर रुक कर हम वहां से लखनादौन की सीमा छूते हुए मुंगवानी नरसिंहपुर के बरमान घाट पहुंचे।

नरसिंहपुर जिले के बरमान नामक गांव से होकर बहने वाली नर्मदा के तट को बरमान घाट कहा गया है। यहां नर्मदा तीन धाराओं में बट गई है तथा नर्मदा के बीच में एक टापू है जहां दीपेश्वर महादेव का मंदिर है। टापू में भगवान दीपेश्वर महादेव की आराधना करते हुए ब्रह्मा जी ने तपस्या की थी इसलिए इस घाट का नाम बरमान घाट पड़ा । बरमान घाट के बारे में हमारे धनपुर के ब्रह्मलीन महात्मा मनु गिरी जी महाराज भी सत्संग के दौरान बताते थे कि उन्होंने बरमान घाट टापू पर काफी समय बिताया था। वर्ष 1981 में मेरे नाना नरसिंहपुर में सहायक भूअभिलेख अधीक्षक के पद पर पदोन्नत होकर गए थे तब उनके वहां रहने के दौरान हमारे परिवार के सदस्यों ने बरमान घाट का दर्शन किया था। मैं नरसिंहपुर जाकर भी बरमान घाट जाने से वंचित रहा था। और अब इतने वर्षों के बाद परिक्रमा के दौरान बरमान घाट के दर्शन का अवसर मिला है।जब हम पहुंचे तो वहां बरमान घाट में मेला भरा हुआ था।हम दक्षिण तट पर थे परंतु घाटों की सुंदरता उत्तर तट पर ही है। यहां नौका बिहार के माध्यम से लोग आसपास नर्मदा के सौंदर्य का आनंद लेते हैं तथा बरमान घाट टापू पर जाते हैं। परिक्रमा वासियों के लिए टापू पर जाना वर्जित है। खड़ी दोपहरी में सूर्यनारायण सिर पर थे। प्रचंड धूप से गर्मी महसूस हो रही थी इसके बावजूद मां नर्मदा को छूकर आती गर्म हवाएं ठंडक दे जाती थी। दूर से ही हमने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया एवं तट दर्शन कर रवाना हो गए। मन ही मन मां नर्मदा से प्रार्थना की कि हे मां जब हम उत्तर तट पर होंगे तब हमें आप अपने आंचल पर जरूर विश्राम देना। हर हर नर्मदे।

बरमान घाट तट दर्शन के बाद हम आगे के लिए बढ़े। आगे बढ़ने की इस होड़ में हमसे नर्मदा तट के कितने ही पवित्र दर्शनीय घाट पीछे छूटे चले जा रहे थे। अब हम होशंगाबाद जिले में प्रवेश कर चुके थे। इधर अब सूर्य का ताप कम होने लगा था। रास्ते में खेतों से काम कर लौटते स्त्री पुरुषों को देखकर शाम होने का संकेत मिल रहा था। हमने तय किया कि सूर्यास्त के पूर्व ही विश्राम के लिए जगह ढूंढ ली जाए। ग्राम पिपरिया में एक जगह पूछा तो बताया कि नर्मदा पुल के नीचे सांडिया घाट है जहां विश्राम किया जा सकता है। पुल पार ना कर पुल के नीचे से हम सीधे नर्मदा तट पहुंचे। मां नर्मदा नीचे बह रही है। तट के ऊपर मां नर्मदा का एक मंदिर है जहां एक बुजुर्ग साधु पूजा पाठ की तैयारी कर रहे थे। कामता महाराज, पंडित राम निवास तिवारी जी जाकर साधु के पास बैठ गए और हम नीचे नर्मदा मां के पास पहुंच गए। संध्या बेला में हम सब ने मां नर्मदा में दीपदान किया। इस बीच तिवारी जी ने आवाज लगाई आरती शुरू होने वाली है। हम सब एक बार फिर तट के ऊपर स्थित मां नर्मदा के मंदिर में पहुंच गए। वहां बुजुर्ग संत बाबा मुरारी दास एवं उनके सहयोगी अनेक युवा पंडितों सहित मां नर्मदा की आरती शुरू कर दी। लगभग पौन घंटे तक आरती पूजन चलता रहा। मैं वहां सांडिया घाट पिपरिया की आरती को फेसबुक में लाइव प्रसारित करने में लग गया। सांडिया घाट को महर्षि शांडिल्य की तपोभूमि कहा जाता है। महर्षि शांडिल्य ने यहां रहकर तपस्या की थी। सांडिया घाट में अनेक मंदिरों के समूह एवं आश्रम है। आरती पूजन के बाद हम उठने की मुद्रा में हुए तो बाबा ने कहा कि कहां जाएंगे अब,,? यही भोजन प्रसादी ग्रहण करिए। बाबा ने अपने शिष्यों को भोजन प्रसादी की तैयारी करने का संकेत दे दिया था। बाबा मुरारी दास जिन्हें वहां के लोग सीताराम बाबा कहते हैं अत्यंत सज्जन तपस्वी संत जान पड़े। भोजन तैयार होते तक हम उनके साथ सत्संग करते रहे और भोजन तैयार होने के बाद उन्होंने मंदिर के सामने चबूतरे पर बैठाकर हम सभी परिक्रमा वासियों को अपने हाथों से टिक्कड़ परस कर खिलाई। यही तो नर्मदा तट का महात्म्य है। इसकी तट पर जो आया भूखा नहीं सोया। तब तक रात के लगभग 10:00 बज चुके थे। बाबा ने हमारे साथ महिला परिक्रमा वासियों को देखकर कहा कि रुकने को तो आप यहां भी रुक सकते हैं पर मैं आपको कुछ दूर पर स्थित त्यागी जी महाराज के आश्रम पहुंचा देता हूं वहां आप लोगों का विश्राम करना ठीक रहेगा । हम लोग रात्रि लगभग 10:30 बजे बाबा के कहने पर उनके एक शिष्य के साथ त्यागी जी महाराज के आश्रम चले गए।

त्यागी जी महाराज का आश्रम पास ही में था। हमें वहां पहुंचने में देर नहीं लगी। वहां पहले से अनेक परिक्रमा वासी ठहरे थे। इसलिए हमें विश्राम की व्यवस्था के लिए कुछ देर ठहरना पड़ा। त्यागी जी महाराज के शिष्यों ने 20 मिनट के अंदर हमारे विश्राम की व्यवस्था कर दी और हम मां नर्मदा के तट पर कब निद्रा आगोश में चले गए पता ही नहीं चला।

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