अंदर के दुश्मन का घात …
कैसे निपटें अंदर के दुश्मन से
जो बार बार करता है घात ।
छिप छिप कर है वो दुश्मन
कर रहा है खाखी पर घात।।
इनके आका सफेदपोश हैं
जिसने पहना है मुखौटा खास।
पहचानें कैसे उस सुअर को
जीसने पहना सफेद पोशाक।।
स्रोत कहाँ इसके साँसों का
कहाँ से मिल रहा इसको खुराक ?
अब उसको पहचानने की जरूरत
छिपा जो इसका आका खास।।
सीमा पार के उस आतंक को
वायुयान से किया परास्त।
अब इस दुश्मन को फिर
कब करेंगे आप परास्त।।
श्रद्धांजलि की इस लड़ी को
कब तोड़ेंगे देशप्रधान।
इस नक्सलियों का कमर तोड़कर
अपाहिज कब करेंगे देशप्रधान।।
न कोई परमिशन की जरूरत
न कोई आदेश का खेल।
बंद कमरा हो श्रीमान आपका
रातों रात फिर हो जाए खेल।।
अब सहादत से मन दुखता है
हृदय में बस उठता है पीर।
इन सहादत पर रोक लगाकर
हर लो तुम आम जन का पीर।।
बेसक ये नक्सली अपने हैं
पर है तो ये भारत का गद्दार।
आस्तीन साँप को कैसे छोड़ा जाए
ये तो है देश का गद्दार।।
©कमलेश झा, फरीदाबाद