लेखक की कलम से

श्राद्धकर्म …

दूर हुए अपनों के प्रति श्रृद्धा ही “श्राद्ध” है

कुछ अपनों की

दूर हो गये सपनों की

समर्पित कुछ याद है

साकार का निराकार से बस मौन संवाद है

कौन आता है जानें के बाद

ये कौन जानता है

मन है कि बस नहीं मानता है

उनके साथ होने का एक

एहसास बस आबाद है

बस जानें वालों के प्रति ये अपार श्रद्धा,प्रेम ही “श्राद्ध “है .

हम बंधे अन्जान सी इक डोर से

जो चला गया वो सदैव आजाद हैं ….

 

    ©अनुपम अहलावत, सेक्टर-48 नोएडा   

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