ओ भारत की नारी …
ओ भारत की नारी
बनी है क्यों अब तक बेचारी ?
मूर्ख है तू !
समझ नहीं पाई
पुरुष ने रचाई है ,माया सारी
ओ भारत की नारी !
देख ना , कैसे धोखा देता है यह नर ?
‘ना’ ‘अरि’ यानि शत्रु रहित बताकर
खुद ही छलता है जन्म -भर l
तू बेचारी ! नादान ,नासमझ
समझ नहीं पाई यह चाल सारी ।
जानती है क्या?
अस्तित्व तेरा घर या बाहर,
कहीं नहीं सुरक्षित?
अपनों के बीच ‘उपेक्षित’
बनी तू अपेक्षित ।
और लोकतंत्र में जहां
बोलने का अधिकार है
तेरा मुंह खोलना पाप
और दुराचार है
देख ले,
कितना चालाक है पुरुष
लचर कानून व्यवस्था के चलते
न्याय की देवी की आंखें भी बंद कराई है
तू निर्भया हो या फिर कोई और
सहानुभूति में मोमबत्ती सब ने जलाई है ।
और जब न्याय की बात आएगी
उनका ही कोई पहरुआ पहल करेगा
पहली गलती ‘क्षमा योग्य’ बताकर
तुझे हर स्थान पर लज्जित करेगा
अरी ओ बावली !
बहुत हो गया बस ……..अब है तेरी बारी
हाथ जो उठाए कोई तो हाथ काट दे
शत्रु की हर चाल का जवाब आज दे
घिसट-घिसट कर ज़िन्दगी ना तू तमाम कर
जिंदगी में हौसले को एक मुकाम दे
जान ले तू ,जब तक ‘औरत’ धरती पर रहेगी
ये जाति सदैव ही ‘प्यासी ‘रहेगी
इलाज तेरे हाथ ही होगा इनका
जैसे को तैसा जब बदला होगा इनका
तू नही द्रौपदी कि कोई कृष्ण बचाने आएगा
तू स्वयं कृष्ण बन जा सुदर्शन तेरा तुझे बचाएगा
भीख मांगना बंद कर दे तू, न्याय के ठेकेदारों से अपने को मजबूत बना, कर प्रश्न इन ‘मक्कारों’ से
जब घर -घर से एक प्रश्न उठेगा
एक सैलाब आएगा
पुनर्जागरण का नया सवेरा नया भास्कर लाएगा
ओ नारी ना बन बेचारी …
मत हार ,मचा हाहाकार
आरंभ कर आगाज कर
तू घर से ही शुरुआत कर
ओ नारी ! दिखा दे अपनी शक्ति सारी ।
जता दे तू नहीं है बेचारी।
©डॉ रत्ना शर्मा, जयपुर